Book Title: Pravachan Saroddhar Uttararddh
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 566
________________ प्रवचन जाए करेजवा मिच्छा एयातकप्पणं तहक्कारा ७६५ ॥ आपाय तिविहा लाख रिया ४० ९७१०३ भिक्षादीनि | गा. ७४८-७७१ ॥४८९॥ जइ अब्भत्थिज परं कारणजाए करेज से कोई । तत्थ य इच्छाकारो न कप्पइ बलामिओगो उ१॥७६२ ॥ संजम- जोए अब्भुद्वियस्स जं किंपि वितहमायरियं । मिच्छा एयंति वियाणिऊण मिच्छत्ति कायचं २॥ ७६३ ॥ कप्पाकप्पे परिनिट्ठियस्स ठाणेसु पंचसु ठियस्स । संयमतवड्डगस्स उ अविकप्पेणं तहक्कारो ३ ॥ ७६४ ॥ आवस्सिया विहेया अवस्सगंतबकारणे मुणिणो ४ । तम्मि निसीहिया जत्थ सेजठाणाइ आयरइ ५॥ ७६५ ॥ आपुच्छणा उ कजे ६ पुवनिसिद्धेण होइ पडिपुच्छा ७ । पुवगहिएण छंदण ८ निमंतणा होअगहिएणं ९॥७६६ ॥ उवसंपया य तिविहा नाणे तह दसणे चरित्ते य १० । एसा हु दसपयारा सामायारी तहऽन्ना य ॥ ७६७ ॥ पडिलेहणा १ पमजण २ भिक्खि ३ रिया ४|ऽऽलोग ५ भुंजणा ६ चेव । पत्तगधुयण ७ वियारा ८ थंडिल ९ आवस्सयाईया १०॥७६८ ॥ १०१ द्वारम् ॥ उवसमसेणिचउक्कं जायइ जीवस्स आभवं नूणं । ता पुण दो एगभवे खवगस्सेणी पुणो एगा ॥७६९॥ १०२ द्वारम् ॥ गीयत्यो य विहारो बीओ गीयत्थमीसओ भणिओ । एत्तो तइयविहारो नाणुनाओ जिणवरेहिं ॥ ७७० ॥ दबओ चक्खुसा पेहे, जुगमित्तं तु खेत्तओ। कालओ जाव रीएजा, उवउत्ते य भावओ॥ ७७१ ॥ १०३ द्वारम् ॥ __ अप्पडिबद्धो अ सया गुरूवएसेण सवभावेसुं । मासाइविहारेणं विहरेज जहोचियं नियमा ॥ ७७२ ॥ मुत्तूण मासकप्पं अन्नो सुत्तमि नत्थि उ विहारो । ता कहमाइग्गहणं कज्जे ऊणाइभावेणं ॥ ७७३ ॥ कालाइदोसओ जइ न दबओ एस कीरए नियमा । भावेण तहवि कीरइ संथारगवच्चयाईहिं ॥ ७७४ ॥ काऊण (कम्हिंपि) मासकप्पं तत्थेव ठियाण तीस ६ मग्गसिरे । सालंबणाण जिट्ठोग्गहो य छम्मासिओ होइ ॥ ७७५ ॥ अह अस्थि पयवियारो चउपाडिवयंमि होइ निग्गमणं ।। ॥४८९ । Join Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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