Book Title: Pravachan Saroddhar Uttararddh
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 544
________________ प्रवचन० सूत्रे ४७८ ॥ वीरवरस्स भगवओ वोलिय चुलसीइवरिससहसेहिं । पउमाईचउवीसं जह हुंति जिणा तहा थुणिमो ॥ ४५७ ॥ पढमं च पउमनाहं सेणियजीवं जिणेसरं नमिमो । बीयं च सूरदेवं वंदे जीवं सुपासस्स || ४५८ ॥ तइयं सुपासनामं उदायिजीवं पणट्ठभववासं । वंदे सयंपभजिणं पुट्टिल्लजीवं चउत्थमहं ॥ ४५९ ॥ सखाणुभूइनामं दढाउजीवं च पंचमं वंदे । छ देवसुयजिणं वंदे जीवं च कित्तिस्स ॥ ४६० ॥ सत्तमयं उदयजिणं वंदे जीवं च संखनामस्स । पेढालं अट्ठमयं आणंदजियं नम॑सामि ॥ ४६१ ॥ पोट्टिलजिणं च नवमं सुरकयसेवं सुनंदजीवस्स । सयकित्तिजिणं दसमं वंदे सयगस्स जीवंति ॥ ४६२ ॥ एगारसमं मुणिसुबयं च वंदामि देवईजीयं । बारसमं अममजिणं सच्चइजीवं जयपईवं ॥ ४६३ ॥ निकसायं तेरसमं वंदे जीवं च वासुदेवस्स । बलदेवजियं वंदे चउदसमं निप्पुलायजिणं ॥ ४६४ ॥ सुलसाजीवं वंदे पन्नरसमं निम्म - मत्तजिणनामं । रोहिणिजीवं नमिमो सोलसमं चित्तगुत्तेति ॥ ४६५ ॥ सत्तरसमं च वंदे रेवइजीवं समाहिनामाणं । संवरमट्ठारसमं सयालिजीवं पणिवयामि ॥ ४६६ ॥ दीवायणस्स जीवं जसोहरं वंदिमो इगुणवीसं । कण्हजियं गयतण्हं वीसइमं विजयमभिवंदे ॥ ४६७ ॥ वंदे इगवीसइमं नारयजीवं च मल्लनामाणं । देवजिणं बावीसं अंबड जीवस्स वंदेऽहं ॥ ४६८ ॥ अमरजियं तेवीसं अणंतविरियामिहं जिणं वंदे । तह साइबुद्धजीवं चउवीसं भद्दजिणनामं ॥ ४६९ ।। उस्सप्पिणिइ चउ| वीस जिणवरा कित्तिया सनामेहिं । सिरिचंदसूरिनामेहिं सुहयरा हुंतु सयकालं ॥ ४७० ॥ ४६ द्वारम् ॥ Jain Education International चत्तारि उडलो दुवे समुद्दे तओ जले चेव । बावीसमहोलोए तिरिए अट्टुत्तरस्यं तु ॥ ४७१ ॥ ४७ द्वारम् ॥ इको व दो व तिन व अट्ठसयं जाव एकसमयम्मि । मणुयगईए सिज्झइ संखाउयवीयरागा उ || ४७२ ॥ ४८ द्वारम् ॥ For Private & Personal Use Only प्रातिज्ञार्थातिशयदोषादीनि ४०-४८ ॥ ४७८ ॥ www.jainelibrary.org

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