Book Title: Pravachan Saroddhar Uttararddh
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 554
________________ प्रवचन० सूत्रे ॥ ४८३ ॥ एण गओ रुगकरंमि य तओ पडिमियतो । बीएणं नंदीसरमेइ तइएण समएणं ॥ ५९८ ॥ पढमेण पंडगवणं बीउ - प्पारण नंदणं एछ । तइउप्पारण तओ इह जंघाचारणो एइ ॥ ५९९ ॥ पढमेण माणुसोत्तरनगं तु नंदीसरं तु बीएणं । एइ तओ तइएणं कयचेइयवंदणो इहयं ॥ ६०० ॥ पढमेण नंदणवणे बीउप्पारण पंडगवणंमि । एइ इहं तइएणं जो विजाचारणो होइ ॥ ६०१ ॥ ६८ द्वारम् ॥ परिहारियाण उ तवो जहन्न मज्झो तहेव उक्कोसो । सीउण्हवासकाले भणिओ धीरेहिं पत्तेयं ॥ ६०२ ॥ तत्थ जहन्नो गिम्हे चउत्थ छ तु होइ मज्झिमओ । अट्ठममिहमुक्तोसो एत्तो सिसिरे पवक्खामि ॥। ६०३ ॥ सिसिरे तु जहन्न तवो छट्ठाई दसमचरमगो होइ । वासासु अट्टमाई बारसपज्जंतगो नेओ ॥ ६०४ ॥ पारणगे आयामं पंचसु गहो दोसुऽभिग्गहो भिक्खे । कप्पट्ठियावि पइदिण करेंति एमेव आयामं ॥ ६०५ ॥ एवं छम्मासतवं चरिजं परिहारिया अणुचरंति । अणु| चरगे परिहारियपरिट्ठिए जाव छम्मासा ॥ ६०६ ॥ कप्पट्ठिओऽवि एवं छम्मासतवं करेइ सेसा उ । अणुपरिहारियभावं | वयंति कप्पट्ठियत्तं च ॥ ६०७ ॥ एवं सो अट्ठारसमासपमाणो य वन्निओ कप्पो । संखेवओ विसेसो विसेससुत्ताउ नायबो ॥ ६०८ ॥ कप्पसम्मत्तीऍ तयं जिणकप्पं वा उविंति गच्छं वा । पडिवज्जमाणगा पुण जिणस्सगासे पवज्जंति ॥ ६०९ ॥ | तित्थयरसमीवासेवगस्स पासे व नो व अन्नस्स । एएसिं जं चरणं परिहारविसुद्धिगं तं तु ॥ ६१० ॥ ६९ द्वारम् ॥ लंद तु होइ कालो सो पुण उक्कोस मज्झिम जहन्नो । उदउल्लकरो जाविह सुक्कइ सो होइ उ जहन्नो ॥ ६११ ॥ उक्कोस पुबकोडी मज्झे पुण होंति णेगठाणाई । एत्थ पुण पंचरत्तं उक्कोसं होइ अहलंदं ॥ ६१२ ॥ जम्हा उ पंचरत्तं चरंति तम्हा Jain Education International For Private & Personal Use Only जंघाचार णादीनि ६८-९ ॥ ४८३ ॥ www.jainelibrary.org

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