Book Title: Pravachan Saroddhar Uttararddh
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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जा चेव य जिणकजह जिणाणं तु । तसिं तु सो
SAKESHALISASSASSAGESSES
उ हुँतिहार्लदी। पंचेव होङ् गच्छो तेसिं उक्कोसपरिमाणं ॥ ६१३ ॥ जा चेव य जिणकप्पे मेरा सा चेव लंदियाणंपि नाणत्तं पुण सुत्ते भिक्खायरिमासकप्पे य॥ ६१४ ॥ अहलंदिआण गच्छे अप्पडिबद्धाण जह जिणाणं तु । नवरं कालविसेसो उउवासे पणग चउमासो ॥ ६१५॥ गच्छे पडिबद्धाणं अहलंदीणं तु अह पुण विसेसो । उग्गह जो तेसिं तु सो आयरियाण आभवइ ॥ ६१६ ॥ एगवसहीऍ पणगं छबीहीओ य गामि कुवंति । दिवसे दिवसे अन्नं अडंति वीहीसु नियमेणं ॥ ६१७॥ पडिबद्धा इयरेऽवि य एकेक्का ते जिणा य थेरा य । अत्थस्स उ देसम्मि य असमत्ते तेसि पडिबंधो ॥ ६१८ ॥ लग्गाइसु तुरंते तो पडिवज्जित्तु खित्तबाहिठिया । गिहंति जं अगहियं तत्थ य गंतूण आयरिओ ॥ ६१९ ॥ तेसिं तयं पयच्छइ खेत्तं इंताण तेसिमे दोसा । वंदंतमवंदंते लोगंमि य होइ परिवाओ॥ ६२०॥ न तरेज जई गंतुं| आयरिओ ताहे एइ सो चेव । अंतरपल्लिं पडिवसभ गामबहि अण्णवसहिं वा ॥ ६२१॥ तीए य अपरिभोगे ते वंदंते न वंदई सो उ । तं घेत्तु अपडिबद्धा ताहि जहिच्छाइ विहरंति ॥ ६२२ ॥ जिणकप्पियावि तहियं किंचि तिगिच्छंपि ते न कारेंति । निप्पडिकम्मसरीरा अवि अच्छिमलंपि नऽवणिति ॥ ६२३ ॥ थेराणं नाणत्तं अतरंतं अप्पिणति गच्छस्स । तेऽवि य से फासुएणं करेंति सबंपि परिकम्मं ॥ ६२४ ॥एक्केक्कपडिग्गहगा सप्पाउरणा भवंति थे। उ । जे पुण सिं जिणकप्पे भयएसिं वत्थपायाई ॥ ६२५ ॥ गणमाणओ जहण्णा तिणि गणा सयग्गसो य उक्कोसा। पुरिसपमाणे पनरस सहस्ससो चेव उक्कोसा ॥ ६२६॥ पडिवज्जमाणगा वा एक्काइ हवेज ऊणपक्खेवे । होति जहण्णा एए सयग्गसो चेव उक्कोसा ॥२७॥ पुबपडिवनगाणवि उक्कोसजहण्णसो परीमाणं । कोडिपुहुत्तं भणियं होइ अहालंदियाणं तु ॥ ६२८ ॥ ७० द्वारम् ॥
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