Book Title: Pravachan Saroddhar Uttararddh
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
| छिवाडिमित्ताहे । तणुपत्तूसियरूवो होइ छिवाडी बुहा बेंति ॥ ६६७ ॥ दीहो वा हस्सो वा जो पिहुलो होइ अप्पबाहल्लो । तं मुणियसमयसारा छिवाडिपोत्थं भणंतीह ॥ ६६८ ॥ ८० द्वारम् ॥
लट्ठी १ तहा विट्ठी २ दंडो य ३ विदंडओ य ४ नाली अ ५ । भणियं दंडयपणगं वक्खाणमिणं भवे तस्स ॥ ६६९ ॥ लट्ठी आयपमाणा विट्ठी चउरंगुलेण परिहीणा । दंडो बाहुपमाणो विदंडओ कक्खमित्तो उ ॥ ६७० ॥ लट्ठीए चउरंगुल समूसिया दंडपंचगे नाली । नइपमुहजलुत्तारे तीए थग्विजए सलिलं ॥ ६७१ ॥ बज्झइ लट्ठीए जवणिया विलट्ठीऍ कत्थइ दुवारं । घट्टिज्जइ ओवस्सयतणयं तेणाइरक्खडा ।। ६७२ || उउबद्धम्मि उ दंडो विदंडओ धिप्पए वरिसयाले । जं सो लहुओ निज्जइ कप्पंतरिओ जलभरणं ॥ ६७३ ॥ विसमाइ वद्धमाणाई दस य पवाई एगवन्नाई । दंडेसु अपोल्लाई सुहाई सेसाई असुहाई ॥ ६७४ ॥ ८१ द्वारम् ॥
aणपण पुण भणियं जिणेहिं जियरागदोसमोहेहिं । साली १ वीहिय २ कोद्दव ३ रालय ४ रने तणाई च ५ ।। ६७५ ।। ८२ द्वारम् ॥
१ एल २ गाव ३ महिसी ४ मिगाणमजिणं च ५ पंचमं होइ । तलिगा १ खल्लग २ वद्धे ३ कोसग ४ कित्ती य ५ बीयं तु ॥ ६७६ ।। ८३ द्वारम् ॥
अप्पडिलेहियदू तूली १ उवहाणगं च २ नायवं । गंडुवहाणा ३ ऽऽलिंगिणि ४ मसूरए ५ चैव पोत्तमए ॥ ६७७ ॥ पल्हवि १ कौयवि २ पावार ३ नवयए ४ तह य दाढिगाली व ५ । दुप्पडिलेहियदूसे एवं बीयं भवे पणगं ॥ ६७८ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
444অ
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628