Book Title: Prastut Prashna Author(s): Jainendrakumar Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya View full book textPage 8
________________ कैफियत इस युगकी सभ्यताको राजनीतिक कहिए । समस्याएँ राजनीतिक मानी जाती हैं और मानवताके त्राणको भी राजनीतिक रूपमें देखा जाता है । इतिहासका अर्थ उसी नज़रमें लगाया जाता है.और भावीके निर्माणमें भी उसी दृष्टिकोणका प्रयोग है। __पर उस राह लड़ाई है समाधान नहीं, यह परिणाम आज प्रत्यक्ष भी है। राजनीति अधूरे जीवनको छूती है । राजनीतिक सभ्यतासे जीवन सभ्य नहीं होगा । जीवनका निर्माण ऐसे न होगा, वह मुक्तिकी ओर यों नहीं बढ़ेगा। वह सभ्यता जो देना था दे चुकी । उसकी अपर्याप्तता अब जग-जाहिर है । एक विस्फोट और, और वह समाप्तप्राय है । और वातावरणमें इतनी आतंककी बारूद भरी है कि विस्फोटका काल बहुत नहीं टल सकता। नब जरूरी है कि एक अधिक स्वस्थ, अधिक निर्भय और समन्वयशील जीवन-विधिका सूत्रारंभ हो और वही दृष्टिकोण लोकमें प्रतिष्ठित किया जावे । उसीकी नींवपर सच्चा और दृढ़ और सुखी भविष्य खड़ा होगा। शायद यह पुस्तक धृष्टता हो । मैं मोह-मुक्त नहीं हूँ। इस दुनियाका कुछ चाहना पाप है । पर चाहसे एकदम छुट्टी कहाँ ? और जो लक्ष्यके अनुगत है वह चाह कर्तव्य भी हो जाती है । सो जो हो, यह पुस्तक सामने आने देनेका साहस मुझसे बन रहा है। दरियागंज, दिल्ली । ९।८।३८ जैनेन्द्रकुमारPage Navigation
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