Book Title: Prashno Ke Uttar Part 2
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 9
________________ चयोंकि मैं इन्हीं पावन चरणों के प्रताप ने पतमा लिनने की क्षमता प्राप्त कर सका हूं। जैन दर्शन एक अगाव समुद्र है, जिस का किनारा प्राप्त करना मेरे जैसे अल्पबुद्धि कवा की बात नहीं है। तथापि इस पुस्तक में में जैनधर्म के सम्बन्ध में जो भी कुबलिल सका हूं उसके पीछे मेरे धर्माचार्य आचार्य-सम्राट् श्रद्धय गुरुदेव पूज्य श्री . आत्माराम जी महाराज का प्रवल अनुग्रह ही काम कर रहा है। मेरा अपना इसमें कुछ नहीं है। इसके मूलस्रोत तो मेरे गुरुदेव श्रद्धास्पद प्राचार्य-सम्राट् ही हैं। ... अन्त में, मैं अपने बड़े गुरुभाई, संस्कृत-प्राकृत-विशारद, पण्डित श्री हेम चन्द्र जी महाराज का आभारी हूं, जो समय-समय पर मेरा मार्ग-दर्शन करते रहते हैं और मुझे प्रत्येक दृष्टि से, पूर्णतया अपना मधुर सहयोग देते रहते हैं। ... . -जान मुनि। - अम्बाला शहर . .: महावीर जैन भवन, . . . भादों शुदि १२, २०२१ ।

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