Book Title: Prashno Ke Uttar Part 2 Author(s): Atmaramji Maharaj Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti View full book textPage 8
________________ साम्प्रदायिक दृष्टिकोण व मान्यता का परिचय कराया गया है। यह सब कुछ लिखने का मेरा उद्देश्य केवल स्थानकवासी युवकों व युवतियों को स्थानकवासी परम्परा की मान्यताओं से परिचित • करवाना है। अपनी मान्यताओं तथा मर्यादानां से अपने सामाजिक लोगों को परिचित कराना मेरी दृष्टि में कर्तव्य की परिपालना है। .. ... पुस्तक के सम्पादक हमारे परम स्नेही, मान्य लेखक पण्डित . मुनि श्री समदर्शी जी हैं। समदर्शी जी स्थानकवासी जैन श्रमणों · · में एक सिद्धहस्त और लब्धप्रतिष्ठ लेखक श्रमण हैं। इन की . . सम्पादन कला की विशेषता मैं क्या कहूं ? संक्षेप में इतना हो : निवेदन किए देता हूं कि आदरणीय श्री समदर्शी जी की लेखनी का . स्पर्श पाकर 'प्रश्नों के उत्तर' का कायाकल्प ही हो गया है । स्नेहास्पद श्री समदर्शी जी की इस प्रेमभरी साहित्य-साधना के लिए हृदयं से मैं इन का आभारी हूं। ... . प्रश्नों के उत्तर' की प्रेस कापी बनाने में वक्तृत्व कला की .. सजीव प्रतिमा, धर्मोपदेष्टा, परमश्रद्धेय महासती श्री चन्दा जी महाराज की सुयोग्य शिष्यानुशिष्याएं विदुषी महासती. श्री लज्जा. वती जी महाराज तथा तपस्या भगवती की महान आराधिका, तपस्विनी महासती श्री सौभाग्यवती जी महाराज की मधुर अाज्ञा पाकर मधुर गायिका महासती श्री सीता जी महाराज, मनोहर व्याख्यात्री महासती श्री कौशल्या जी महाराज, साहित्यरत्न महासती श्री महेन्द्रा जी महाराज इन पूज्य महासतियों का पर्याप्त सहयोग प्राप्त रहा है। इस चिर-स्मरणीय सहयोग के लिए मैं महासती:: मण्डल का हृदय से आभारी हूं। .. - मैं अपने परम आराध्य, परम उपास्य, परम श्रद्धेय जैन धर्मदिवाकर, साहित्यरत्न, जैनागमरत्नाकर, प्राचार्य-सम्राट् गुरुदेव - पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज के पावन चरणों का बड़ा कृतज्ञ हूं। . .Page Navigation
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