Book Title: Prashno Ke Uttar Part 2
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 6
________________ ग्राज के हिन्दी युग में ऐसी पुस्तक की महान आवश्यकता थी । विद्वान मुनि श्री ने अपने अनवरत परिश्रम द्वारा इस प्रावश्यकता को पूर्ण करने का स्तुत्य प्रयास किया है, इस के लिए हम मुनि श्री के अत्यन्त आभारी हैं । * पन्नालाल जैन मंत्री - प्राचार्य श्री आत्माराम जैन प्रकाशन समिति जैन स्थानक, लुधियाना । किसने क्या कहा ? जयपुर से 'अहिंसा' नाम का एक पाक्षिक पत्र निकलता है, पत्र के सम्पादक- इन्द्र लाल जी शास्त्री, विद्यालंकार हैं । इस पत्र में ता० १ फरवरी १९६३ के श्रंक में "प्रश्नों के उत्तर" (प्रथम खण्ड ) की समालोचना छपी है । वह पाठकों की जानकारी के लिए ज्यों की त्यों उद्धृत की जा रही है: "प्रस्तुत पुस्तक में तल-स्पर्शी, बहुश्रुत विद्वान लेखक ने प्रायः समस्त भारतीय दर्शनों पर विवेचन कर के जैन दर्शन की विशिष्टता तुलनात्मक दृष्टि से बताई है। जगत की अनादिता, कर्म सिद्धान्त, ईश्वर-विचार, भागवतादि ग्रन्थों में जैनधर्म का उल्लेख आदि विषयों पर पर्याप्त गवेषणा के साथ प्रकाश डाला गया है । इसके प्रतिरिक्त, लेखक ने अपने सम्प्रदाय सम्बन्धी दृष्टिकोण और मान्यतात्रों को समझाने का प्रयत्न किया है । सारी पुस्तक पढ़ने योग्य और तत्त्वज्ञान में सहायक सिद्ध होती है । भाषा सरल व सुबोध है । ऐसी पुस्तकों के प्रकाशन की आवश्यकता है । " 1

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