Book Title: Prakarantrai
Author(s): Mahabodhivijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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________________ [13] जीवविचार वृ. पञ्चाशत् ते च लवणसमुद्रे हिमवद्गिरेः शिखरिगिरेश्वोभयप्रान्ताभ्यां निर्गतयोयोर्द्वयोर्दष्ट्रयोरुपरि सप्त सप्त विद्यन्ते / तद्द्वीपवासिनो युगलिनो मनुष्याः पल्योपमासंख्येयभागवर्षायुषोऽष्टशतधनुरुच्छ्रिताश्च सन्ति / एते सर्वे त्रिविधा अपि मनुष्या गर्भनाः संमूर्छिमाश्चेति द्विधा बौध्याः // 23 // . अथ चतुर्विधदेवभेदानाहदसहा भवणाहिबई अट्ठविहा वाणमंतरा हुँति / जोइसिया पंचविहा दुविहा वेमाणिया देवा // 24 // देवा हि भवनपति 1 व्यन्तर 2 ज्योतिष्क 3 वैमानिक 4 भेदाचतुर्धा / तत्र भवनाधिपतयो दशधा-असुर 1 नाग 2 सुवर्ण 3 विद्युत् 4 अग्नि 5 द्वीप 6 उदधि 7 दिग् 8 वायु 9 स्तनिताः 10 कुमारान्ता ज्ञेयाः / तथा वानमन्तरा व्यन्तरा अष्टविधा अष्टप्रकारा भवन्ति / ते चामी-पिशाचाः 1 भूताः 2 यक्षाः३ राक्षसाः 4 किंनराः५ किम्पुरुषाः 6 महोरगाः 7 गान्धर्वा 8 इत्यष्टौ / पुनरन्येऽपि अणपनीप्रभृतयो व्यन्तरभेदा ज्ञेयाः। तथा ज्योतिष्काः पञ्चविधा:-चन्द्र 2 सूर्य 2 ग्रह 3 नक्षत्र 4 तारा 5 रूपाः। ते पुनर्द्विधा-मनुष्यक्षेत्रेचराः 1 तबहिः स्थिराः 2 इति / तथा वैमानिका देवा द्विविधाः-कल्पोपपन्नाः 1 कल्पातीताश्च 2 / तत्र सौधर्म 1 ईशान 2 सनत्कुमार 3 माहेन्द्र 4 ब्रह्मलोक 5 लान्तक 6 शुक्र 7 सहस्रार 8 आनत 9 प्राणत 10 आरण 11 अच्युत 12 द्वादशकल्पवासिनो देवाः कल्पोपपन्ना उच्यन्ते / इन्द्रसामानिकादिव्यरस्थावन्त इत्यर्थः / तथा सुदर्शन 1 सुप्रबुद्ध 2 मनोरम 3 सर्वतोभद्र 4 विशाल 5 सुमनः 6 सौमनस 7 प्रियंकर 8 नंदिकर 9 नाम नवग्रैवेयकविमानवासिनः, विजय 1 वैजयन्त 2 जयन्त 3 अपराजित 4
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