Book Title: Prakarantrai
Author(s): Mahabodhivijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 52
________________ [25] जीवविचार वृ. अथ प्रस्तुतसूत्रं निगमयन्नाह-- एसो जीववियारो संखेवरूईण जाणणा हेउं / संखित्तो उद्धरिओ रूंदाओ सुयसमुद्दाओ // 51 // साक्षादुको जीवानां विचारः संक्षेपरुचीनां स्वल्पमतीनां मनुष्याणां ज्ञापनाहेतु ज्ञापननिमित्तं, रुन्द्रात् अनवग्राह्यविस्तारात् श्रुतसमुद्रात् संक्षिप्त उद्धृत संक्षेपेणोद्धृत निबद्ध इत्यर्थः / एतेन न स्वमनीषया कल्पित इति सूचितम् // 51 // इति जीवविचारलघुवृत्तिः॥ बृहवृत्त्यादिकं त्वस्य यद्यप्यस्ति पुरातनम् / तथापि सुखबोधार्थ वृत्तिकेयं विनिर्मिता // 1 // प्रमादादा मतेर्मान्द्यात्.प्रोक्तमुत्सूत्रमत्र यत् / तन्मिथ्यादुष्कृतं मेऽस्तु शोधनीयं च धीधनैः // 2 // संवद्व्योमशिलीमुखाष्टवसुधा (1850) संख्ये नभस्ये सिते / पक्षे पावनसप्तमीसुदिवसे बीकादिनेराभिधे // दंगे श्रीमति पूर्णतामभजत् व्याख्या सुबोधिन्यसौ / सम्यक् श्रीजिनचन्द्रसूरीमुनिपे गच्छेशतां बिभ्रति // 1 // . श्रीमन्तो जिन भक्तिमूरिगुरवश्चान्द्रे कुले जज्ञिरे / तच्छिष्या जिनलाभसूरिमुनिपाः श्रीज्ञानतः सागराः॥ तच्छिष्यामृतधर्मवाचकवरास्तेषां विनेयः क्षमाकल्याणः स्वपरोपकार विधयेऽकार्षीदिमां वृत्तिकाम् // 2 // श्रीजीवविचारप्रकरणं सवृत्तिकं समाप्तम् //

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