Book Title: Prakarantrai
Author(s): Mahabodhivijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 54
________________ श्रीशंखेश्वरपार्श्वनाथाय नमः // उपाध्यायश्री समयसुंदरकृतवृत्त्या संवलितं श्रीनवतत्वप्रकरणम् शांतिनाथं जिनं नन्वा गणिः समयसुंदरः। श्रीनवतत्त्वसूत्रस्य शब्दार्थ कुरुते स्फुटम् // जीवाज्जीवा पुण्णं पावासवसंवरो अ निज्जरणा / बंधो मुक्खो अ तहा नवतत्ता हुंति नायव्वा // 1 // नव तत्त्वानि भवन्ति, तानि धर्मार्थिभितिव्यानि / तत्चमिति कोऽर्थः ? पदार्थस्वरूपम् , तानि नवतत्त्वानि कानि ? नामत आह 'जीवतत्वं 1 अजीवतत्वं 2 पुण्यतत्वं 3 पापतत्वं 4 आश्रवतत्वं 5 संवरतत्वं 6 च पुनः निर्जरातत्वं 7 बन्धतत्वं 8 मोक्षतत्वं 9 चकारात् केषांचिन्मते सप्ततत्त्वानि सन्ति / तथा पुनरत्र जीवादिनवपदार्थानां व्युत्पत्तिकरणे शिष्यस्य व्यामोहो भवतीति हेतोयुत्पत्तिनं कृता शब्दार्थमात्रस्य साधारणत्वात् // 1 //

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