Book Title: Prakarantrai
Author(s): Mahabodhivijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 45
________________ प्रकरणत्रयी [18] इत्युक्तं देहमानद्वारम् / साम्प्रतमायुरिमाहबावीसा पुढवीए, सत्तय आउस्स तिन्नि वाउस्स / वाससहस्सा दस तरुगणाण तेउत्तिरत्ताऊ // 34 // . पृथिव्याः पृथिवीकायस्य द्वाविंशतिवर्षसहस्राः उत्कृष्टायुःस्थितिः, एवमकायस्य सप्तवर्षसहस्राः, वायुकायस्य त्रयो वर्षसहस्राः, तरूणां प्रत्येकवनस्पतिसमूहानां दश वर्षसहस्राः उत्कृष्टायुःस्थितिः, तेजस्कायस्य त्रीग्यहोरात्राण्युत्कृष्टायुःस्थितिः। जघन्या तु सर्वेषामप्यान्तमहर्तिकी बोध्या // 34 // इत्युक्तं बादरस्थावरपञ्चकायुः // अथ द्वीन्द्रियादीनां तदाहवासाणि बारसाऊ विइंदियाणं तिइंदियाणं तु / अउणापन्नदिणाई चउरिंदीणं तु छम्मासा // 35 // द्वीन्द्रियाणां द्वादशवर्षाण्यायुः उत्कृष्टा स्थितिः, त्रीन्द्रियाणां चैकोनपश्चाशद्दिनानि आयुः, चतुरिन्द्रियाणां तु षण्मासाः, जघन्यं तु सर्वेषां प्राग्वत् // 35 // अथ चतुर्विधपश्चेन्द्रियाणामुत्कृष्टायुर्मानमाह- . सुरनेरइयाणट्टिइ, उक्कोसा सागराणि तित्तीसं / चउपय तिरिय मणुस्सा, तिन्निय पलिओवमा हुंति // 36 //

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