Book Title: Prakarantrai
Author(s): Mahabodhivijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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________________ प्रकरणत्रयी [22] . असन्नित्ति-असंज्ञिपञ्चेन्द्रियेषु संज्ञिपश्चेन्द्रियेषु च क्रमेण नव दश प्राणा बोद्धव्याः। तत्रासंज्ञिपञ्चेन्द्रियेषु त एवाष्टौ श्रोत्रेन्द्रिययुता नव स्युः / तथा संज्ञिपश्चेन्द्रियेषु त एव नव मनोबलयुता दश प्राणाः स्युः / तैः प्राणैः सह विप्रयोगो जीवानां मरणं भण्यते / अत्र देवनारकगर्भजतिर्यग्मनुष्याः संज्ञिन उच्यन्ते / संमूच्छिमतिर्यग्मनुष्यास्तु असंज्ञिन उच्यन्ते / तत्र संमूर्छिममनुष्याणां वाग्बलादिवर्जिताः सप्ताष्टौ प्राणा बोध्याः // 43 // अथोक्तस्वरूपं मरणं जीवैः कतिवारान् प्राप्तमित्याशंकानिरासार्थमाह एवं अणोरपारे संसारे सायरंमि भीमंमि / पत्तो अणंतखुत्तो जीवेहिं अपनधम्मेहिं // 44 // अप्राप्तधर्मे जींवैः एवं अणोरपारत्ति-अवारपारवर्जिते अत एव भीमे भयंकरे संसारे सागरे संसाररूपसमुद्रे एवं प्राणवियोगलक्षणप्रकारेणानन्तकृत्वः अनन्तवारान् पत्तोत्ति प्राप्तम् प्रसंगान्मरणमिति संबध्यते / प्राकृतत्वात्पुंलिंगनिर्देशः / क्वचित्तु 'पत्तं' पाठो दृश्यते // 44 // अथ पञ्चमं योनिद्वारमाह- . तह चउरासीलक्खा संखा जोणीण होइ जीवाणं / पुढवाईण चउण्हं, पत्तेये सत्त सत्तेव // 45 // दसपत्तेयतरूणं चउदस लक्खा हवंति इयरेसु / विगलिदिएसु दो दो चउरो पंचिंदि तिरियाणं // 46 // चउरो चउरो नारयसुरेसु मणुआण चउदस हवंति / / संपिडिया य सव्वे चुलसीलक्खाउ जोणीणं // 47 //
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