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पत्रीमार्गप्रदीपिका। शेष ३६० बचे इनको ६० साठ गुणे किये ३१६०० हुए इनमें भाजक ५९८ का भाग दिया लब्ध ३६ विकला आयी ऐसे अंशादिक फल ०३०३६ आये इनको ७।२७०० में मिलाये ७।२७:३०।३६ हुए इसमेंसे अयनांश २२।२९/० घटाये ७।५।१३६ शेष बचे, यह दशमभाव स्पष्ट हुआ इसकी राशिम ६ छः राशि युक्त करनेसे १॥५१३६ चतुर्थभाव हुआ ॥
अथ भावसंधितचक्रसाधनमाहलग्नं तुर्यात्सप्तमातुर्यभावं शोध्यं राशिः पञ्चभिस्ताडितोंऽशाः । अंशायाश्चेदिग्घताः स्युः कलाद्या लग्ने तुर्ये पञ्चवारं प्रदद्यात् ॥६॥ तन्वाद्याः संधिसहिता भावाः षट्पड्युताः परे ।
यदत्यारंभयोः संध्योरन्तस्थस्तद्गतो ग्रहः ॥७॥ अब भावसंधि और चलितचक्रका साधन कहते हैं-लमको चतुर्थ भावमेंसे चतुर्थ भावको सप्तमभावमेंसे शोधना ( हीन करना) शेष राशिको ५ पांच गुणी करना अंश होवे और जो अंश कला विकलाको दशगुणा करे सो कलादिक हो, ऐसे अंशादिकको लगमें और चतुर्थभावमें (चतुर्थभावमसे लगको हीन किया हो तो लममें, सप्तमभावमेंसे चतुर्थभाव हीन किया हो वो चतुर्थभावमें) पांचवार युक्त करना ॥६॥ सो लगको आदि ले संधिसहितक्ष्छः भाव हों। इन ६ छःभावोंमें छः छः राशि युक्त करनेसे शेष छःभाव हों। जिस भावकी अंत्य (आगेकी) और आरंभ (पीछेकी ) संधियोंके मध्यमें (बीचमें) यह हो वे उसी भावमें स्थित जानना । अर्थाद ग्रह जिस भावमें स्थित हो उस भावकी आरंभ (पीछेकी) संधिसे न्यून हो तो गवभावमें स्थित हो और अंत्य (आगेकी ) संघिसे अधिक हो तो आगेके भावमें स्थित होगा ॥ यदि इन दोनों संधियोंके बीचमें हो (आरंभसंधिसे अधिक और विरामसंघिसे न्यून हो) बो उसी भावमें ग्रह स्थित जानना ॥ ७ ॥
उदाहरण। लग्न ९ । २३ । २८ । ३५ को चतुर्थभाव १ । ५। । ३६ मेसे हीन किया शेष ३।११।३३।१ बचे इसकी राशिके अंक ३ को ५ गुणे करनेसे १५ हुए ये अंश हुए । अंशादिक ११॥३३॥१ को दशगुणे किये ११०१३३०१० ये कला विकला प्रविविकलादिक हुए परंतु ये कला
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