Book Title: Pasanahchariyam Author(s): Padmkirti Publisher: Prakrit Text Society AhmedabadPage 20
________________ अनुवाद ८४ ८५ 0 २३ २५ اس 2 2 2 0 اس الله १३१ الله १३१ १३१ १३३ الله 0 ० ० संधि कडवक कडवक का विषय मूल १८ असुर द्वारा उत्पन्न की गयी भूतप्रेतों की बीभत्सता । १२६ १९ असुर का वृष्टि करने का निश्चय । १२६ २० मेघों का वर्णन । १२७ २१ मेघों की सतत वृद्धि । १२७ २२ पृथिवी की जलमग्नता । १२८ जलौघ की सर्व व्यापकता । १२८ धरणेन्द्र को उपसर्ग की सूचना की प्राप्ति, उसका तत्क्षग पार्श्व के पास आगमन ।। । १२८ नागराज द्वारा कमल का निर्माण तथा उस पर आरोहण । १२९ २६ नागराज द्वारा पार्श्व की सेवा । १३० २७ असुर की नागराज को चेतावनी । १३० २८ असुर द्वारा नागराज पर अत्रों से प्रहार । असुर द्वारा नागराज को सेवा से विचलित करने का अन्य प्रयत्न । ३० पार्श्वनाथ को केवल ज्ञान की उत्पत्ति । केवल ज्ञान की प्रशंसा । असुर के मन में भय का संचार । १३३ ३ केवल ज्ञान की उत्पत्ति की देवों को सूचना । १३४ ४ इन्द्र तथा अन्य देवों का पार्श्व के समीप पहुँचने के लिये प्रस्थान । १३४ ५ भीमाटवी को जलमग्न देखकर इन्द्र का रोष । १३५ ६ इन्द्र द्वारा छोड़े गये वज्र से पीडित असुर का पार्श्वनाथ के पास शरण के लिये आगमन। १३५ इन्द्र द्वारा समवसरण की रचना । १३६ ८ समवसरण मे जिनेन्द्र के आसन । १३६ देवों द्वारा जिनेन्द्र की स्तुति । १३७ १० देवो द्वारा जिनेन्द्र की वंदना । १३७ ११ इन्द्र की जिनेन्द्र से बोधि के लिये प्रार्थना । १३७ १२ गजपुर के स्वामी का जिनेन्द्र से दीक्षाग्रहण, श्रमण संघ की स्थापना । १३८ १६ १ गणधर की लोक की उत्पत्ति पर प्रकाश डालने के लिये जिनेन्द्र से विनति । २ आकाश, लोकाकाश तथा मेरु की स्थिति पर प्रकाश । १३९ ३ अधोलोक तथा उर्ध्वलोक का वर्णन | १४० ४ सात नरकभूमियों का वर्णन । ५ सोलह स्वर्गों का वर्णन । ६ वैमानिक देवों की आयु का वर्णन । १४१ ७ ज्योतिष्क देवों के प्रकार, उनकी आयु आदि । १४१ 2 o ० ० ० लww xxx mmm १४० १४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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