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संधि कडवक कडवक का विषय
मूल १८ असुर द्वारा उत्पन्न की गयी भूतप्रेतों की बीभत्सता ।
१२६ १९ असुर का वृष्टि करने का निश्चय ।
१२६ २० मेघों का वर्णन ।
१२७ २१ मेघों की सतत वृद्धि ।
१२७ २२ पृथिवी की जलमग्नता ।
१२८ जलौघ की सर्व व्यापकता ।
१२८ धरणेन्द्र को उपसर्ग की सूचना की प्राप्ति, उसका तत्क्षग पार्श्व के पास आगमन ।। । १२८ नागराज द्वारा कमल का निर्माण तथा उस पर आरोहण ।
१२९ २६ नागराज द्वारा पार्श्व की सेवा ।
१३० २७ असुर की नागराज को चेतावनी ।
१३० २८ असुर द्वारा नागराज पर अत्रों से प्रहार ।
असुर द्वारा नागराज को सेवा से विचलित करने का अन्य प्रयत्न । ३० पार्श्वनाथ को केवल ज्ञान की उत्पत्ति ।
केवल ज्ञान की प्रशंसा । असुर के मन में भय का संचार ।
१३३ ३ केवल ज्ञान की उत्पत्ति की देवों को सूचना ।
१३४ ४ इन्द्र तथा अन्य देवों का पार्श्व के समीप पहुँचने के लिये प्रस्थान ।
१३४ ५ भीमाटवी को जलमग्न देखकर इन्द्र का रोष ।
१३५ ६ इन्द्र द्वारा छोड़े गये वज्र से पीडित असुर का पार्श्वनाथ के पास शरण के लिये आगमन। १३५ इन्द्र द्वारा समवसरण की रचना ।
१३६ ८ समवसरण मे जिनेन्द्र के आसन ।
१३६ देवों द्वारा जिनेन्द्र की स्तुति ।
१३७ १० देवो द्वारा जिनेन्द्र की वंदना ।
१३७ ११ इन्द्र की जिनेन्द्र से बोधि के लिये प्रार्थना ।
१३७ १२ गजपुर के स्वामी का जिनेन्द्र से दीक्षाग्रहण, श्रमण संघ की स्थापना ।
१३८ १६ १ गणधर की लोक की उत्पत्ति पर प्रकाश डालने के लिये जिनेन्द्र से विनति । २ आकाश, लोकाकाश तथा मेरु की स्थिति पर प्रकाश ।
१३९ ३ अधोलोक तथा उर्ध्वलोक का वर्णन |
१४० ४ सात नरकभूमियों का वर्णन । ५ सोलह स्वर्गों का वर्णन । ६ वैमानिक देवों की आयु का वर्णन ।
१४१ ७ ज्योतिष्क देवों के प्रकार, उनकी आयु आदि ।
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