Book Title: Paia Vinnan Kaha Trayam Part 02
Author(s): Kastursuri, Chandrodayvijay,
Publisher: Vijay Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
View full book text ________________
पाइअवि-10 न्माणकहापस
देवाणंदामाहणीए कहा-६६
॥३७॥
सन्नाणरयणड्ढो तस्स य वरघरिणी गुणमणि रोहणधरणी देवाणंदा माहणी । अह अन्नया सुरेहिं परियरिओ विरजिणिदो जिणवरधम्मे आसत्ताणं सुहिय णं ताणं दुण्हं पि पडिबोहण₹ काई बहिरुज्जाणे समोसरिओ । जिणागमणं नाऊणं भत्तिभरुब्भिन्नबहलपुलियंगो उसहदत्तो वंदणहेउं सव्विड्ढीए गच्छइ, देवाणंदा वि परियणसहिया सव्वालंकारभूसियसरीरा साणंदा गच्छइ । समवसरणं दळूणं ते दोवि रहवराओ ओयरिय तत्थ पंचविहाभिगमेणं पविसिऊणं जिणनाहं वंदित्ता, दोवि अणिमिसच्छाई निसन्नाई । सदेवमणुयासुररायपरिसाए देवाणंदा अइसिणेहा वीरजिणं पिच्छंती ओगयपन्हा जाया । तत्तो गोयमसामी वीरजिणं नमिऊणं पुच्छए-भयवं ! तुम्हाणमुवरिं समत्थभव्वाणं सिणेहो होइ, पुणो देवाणंदाए केण निमित्तेण अइनेहो दीसए । तो जिणो कहेइ-गोयम ! अहं पुष्फोत्तरविमाणाओ चविऊण एयाए कुच्छीए बासोईदिवसाइं वसिओ, तेण देवाणंदा ममोवरिं गुरुसिणेहपडिबध्धा आगयपन्हा जाया, गोयम ! मम जणणि त्ति जाणाहि । एवं सिरि- वीरजिणंदेण कहियं अंतरंग-पडिबंध-कारणं सोच्चा देवाणंदा महाणंदा भवभमणुविग्गा संविग्गा विणयपणयंगी एवं विन्नवेइ-देवाहिदेव ! मज्झ सिद्धिसही पव्वज्जा दिज्जउ । तओ भयवया संसारतावहरणे दक्खा परिपक्करसदक्खा समत्थजीवरक्खा दिक्खा तीए विइन्ना । तो सिक्खं दाऊणं अज्जाए चंदणाए समप्पिआ, सा देवाणंदा निरइयारा संजमभारं पालेइ, पंचसमिया तिगुत्ता पंचिंदियनिग्गहम्मि आसत्ता अइदुक्कर बज्झभितरतवच्चरणं कुणंती तवचरणकरणजोगेण देवाण वि आणंद दिती पयडियजहत्थनामा देवाणंदा समणी हवइ । कमेण सा परिवड्ढमाणसुक्कज्झाणानलदइढकम्मवणगहणा उप्पन्नविमलकेवलनाणा सुहसमिद्धा सिद्धा । एवं सिरिवीरजिणिंदमुहाओ
१ भागतप्रस्ना-निर्गतस्तनधारा । २ परिपक्वरसद्राक्ष ।
॥३७॥
Jain Education International
For Personal Private Use Only
w.jaine brary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232