Book Title: Paia Vinnan Kaha Trayam Part 02
Author(s): Kastursuri, Chandrodayvijay, 
Publisher: Vijay Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir

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Page 180
________________ पाइअविनाणकहाण मुणिवर दुगस्स कहा-१०५ ॥१५२॥ कए य उज्जमेह । इयरहा किरिया आरूढवडियाणं पिव हासटाणं' । तेहिं भणियं-'भयवं ! जइ अम्हं जीवयव्वपडिबंधो मणागं पि होज्जा तया न विरइगहणमई कुणेज्जा, ता भववासुविग्गाणं तुज्झ पयपउमजुयललागाणं विग्घे वि अविचलाणं अम्हाणं देहि पबज्ज । तओ गुरुणा दिक्खिऊणं सब्बो कायचविही निदंसिओ, सुत्तत्थेहिं च परं निप्फत्तिं सम्म उवणीआ । गुरुकुलवासे सुचिरं वसिऊणं ते महासत्ता एगया नियगुरुणो आणाए एगागिविहारिणो जाया । वुत्तं च नाणस्स होइ भागी, थिरयरओ दंसणे चरित्ते य । धन्ना जावकहाए, गुरुकुलवासं न मुंचंति ॥ अह अणिययवित्तीए विहरमाणो सम्म उवउत्तो कह वि अहिच्छत्ताए पुरीए जयसुंदरो साहू समागओ, तत्थ य जा किर तेणं परिणीया सेद्विणो धूया सोमसिरी आसि सा पावा तक्कालं असईवित्तीए गब्भवई संजाया चिंतेइ-जइ जयसुंदरो इह एइ तो तं उप्पब्वाविय नियदुच्चरियं निगृहेमि । तइया भिक्खढाए गिहे पविट्ठो तीए य सो साहू दिट्ठो, तो समाणसीलाए सझियाए सहीए झत्ति गेहस्स अंतो पक्खित्तो । तीए भणिओ य-'हे जीवनाह ! एत्तो दुक्करतवचरणाओ विरमसु, हे सुहय ! जत्थ दिणे तुज्झ दिक्खावत्ता निसामिया, तत्थ ममं वज्जवडणाऽइरित्तं दुक्खं जायं, तुह वियोगे जीवियं अज्ज चयामि कल्लं वा चयामि, नवरं एत्तियदिवहे वि तुह दंसणाऽऽसाए ठियं, इहि च तए सद्धिं जीवयं मरणं वा नत्थि संदेहो, ता पाणनाह ! जं तुज्झ रोयए, तं समायरसु' । एवं तीए भणिए सो साहू गुरुणो वयणं सरिऊणं पुवुवइटुं च अणुवसमं धम्मपच्चूहं अहुणा उवट्रियं ति वियाणित्ता मोक्खत्थबद्धलक्खो बाढं नियजीवियव्वनिरवेक्खो तं भणेइ-'भो भद्दे ! एक्कं खणं तुमं गिहबाहिं ठाहि, जाव अहं किंपि नियकिच्चं करेमि, तदुत्तरं जं तुव हियं आयंतियसुहं १. प्रातिवेश्मिकया । २ आत्यन्तिकसुखम् । ॥१५॥ Jain Educati o nal For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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