Book Title: Paia Vinnan Kaha Trayam Part 02
Author(s): Kastursuri, Chandrodayvijay, 
Publisher: Vijay Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir

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Page 166
________________ पाइअविन्नाणकहाण प्पन्नं । देवेहिं तस्स महिमा विहिओ, तओ दमसाररिसी बहवे जणे पडिबोहिऊणं दुवालस वरिसाइं जाव केवलपज्जायं पालिऊणं पज्जते संलेहणं किच्चा सिद्धिपयं पत्तो। उवएसो-- . उवसमवरगुणभूसिय-दमसाररिसिस्स बोहगं वुत्तं । सोच्चा भविया तुम्हे, सइ उवसमधारगा होह ॥१०२॥ उवसमगुणमि दमसारसाहुणो दुरुत्तरसययमी कहा समत्ता ॥१०२॥ -आत्मप्रबोधात् । कोवकार गविउसमा|हणस्स कहा-१०३ ॥१३८॥ अप्पं पि निमित्तं पप्प कोवकारगविउसमाहणस्स तिउत्तरमययमी कहा-॥ १०३ ॥ 'कोवो चंडालसमो, न विहेयव्यो सुहेसिणा केण' । सप्पियविउसस्सेहं, दिटुंतो वोहणट्ठाए ॥१०३॥ वाणारसीनयरीए गंगानईए तीरंमि एगो विउसमहासओ रायमाणणीओ पइदिणं सिणाण₹ आगच्छेइ, तहिं एगया समीबत्थिया चंडालजुवई वि सिणाणटुं आगंतूणं सिणाणं किच्चा नियइट्ठदेवमुत्ति ण्हवेइ पूएइ य । एयं दट्टणं रायपंडिअस्स मुहं मिलाणं संजायं, 'किं कायव्व एत्थ मए' त्ति विमूढो होत्था । सा चंडालजुबई एवं पइदिणं तत्थ आगच्छेइ । एगया रायपंडिओ असहमाणो सरोसं तं चंडालिं वएइ-हे मुरुक्खे ! तुं जलं अपवित्तं विहेसि, तुव देहच्छाया वि जलंमि पडेइ, तेण इम गंगाजलं सुद्धं पि मैइलं होइ' । सा जुवई कहेइ–'अहं तु तुवत्तो निच्चयरपएसंमि ठाइऊणं बहाएमि, मइलं जलं तुम पइ न आगच्छेइ, जलच्छंटा वि न लग्गेज्जा तहा हं दूरं थिया अम्हि । एवं समाणे वि जइ तुमं अंतराओ होज्जा तइया अहं विलंबेण आगच्छिस्सं ?, एवं एयारिसनमिरवयणेहिं' पि अईव कुद्धो १. मलिनम् । ॥१३८॥ Jan Education For Personal Private Use Only Jainelibrary.org

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