Book Title: Paia Vinnan Kaha Trayam Part 02
Author(s): Kastursuri, Chandrodayvijay, 
Publisher: Vijay Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir

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Page 177
________________ पाइअविन्नणकाप सुलसासा| विगाए कहा-१०४ ॥१४॥ यंमि सिरिमहावीरं झायंता अंबडनाम सगुरुं च नमंता समाहिणा कालं किच्चा पंचमं सग्गं संपत्ता । अंबडो परिवायगो थूलहिंसं परिच्चयंतो नईपमुहेसु केलिं अकुणंतो नट्टविकहाइ-अणत्थदंडं असमायरंतो अलाबुदारुमट्टियापत्तवज्जियपत्ताई अपरिगिण्हमाणो गंगामट्टियं मोत्तण अन्नविलेवणं अकुणंतो कंदमूलफलाइं अभुंजतो आहकम्माइ -दोस-दोसियं आहा' असेवंतो अंगुलीयमेत्तं अलंकारं धरंतो गेरुगाइधाउरत्तवत्थाइं परिधरंतो केणवि गिहत्थेण दिण्णं वत्थेण य सम्म गालियं जलं पिवंतो, आढयपमियं जलं सिणाण, गिण्हंतो, सिरिमंतजिणिंदपणीयसुद्धधम्ममि च्चिय एगमई धरंतो सयलं पि निजजम्मं सहलीकाऊणं पज्जते आसण्णपरमपओ मासिई संलेहणं किच्चा बम्हदेवलोगं पत्तो । तहिं दिव्वाई देवसुहाई अणुभवित्ता कमेण माणवभवं पप्प संजमाराहणपुवं सिद्धिं पाविस्सइ । सुलसा साविगा य हिययपंकयंमि एगं वीरजिणीसरं चिय झायंती सव्वुत्तमथिरयाभूसणेण सम्मत्तं भूसित्ता तित्थयरनामकम्मं उवज्जियवई इहच्चिय भरहखित्तंमि आगामिचउवीसीए उत्तीसाइसयसंजुत्तो निम्ममो नाम पन्नरसमो तित्थयरो भविस्सइ । एवं जो मणूसो तित्थय थिरयाभावेण हियथाम धरिस्सइ सो तिजगसेहरपयं पावेज्जा ।। उवएसो-- सम्मत्तभावभूसिय-मुलसाचरियं इमं वियाणित्ता । तह तुम्हे जिणवीरं, झाएह मणसि भो भविया ! ॥१०४॥ सम्मत्तदंसणपहामि मुलसासाविगाए चउरुत्तरसयइमी कहा समत्ता ॥१०४॥ -आत्मप्रबोधात् । | | ॥१४॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainibrary.org

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