Book Title: Paia Vinnan Kaha Trayam Part 02
Author(s): Kastursuri, Chandrodayvijay,
Publisher: Vijay Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
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पाइअविन्नाणकहाए
॥१३७॥
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राया वि रज्जं चिच्चा नट्टो, नय च सुन्नं जायं । तंमि समए पडण - खलण - पलायणाइ किरियाजणियविविहदुक्खेहिं दुहिए नयर लोगे दणं कोवाओ निवृत्तो साहू चिंतित्था - 'अहो मए किं एयं कथं निक्कारणं चिय एए सव्वे लोगा दुहिया कया । परं सव्वण्णुवयणं कहं अन्नह होज्जा ?, तम्हा पहुणा जं पुवं वृत्तं तं चिय जायं, मए मुहेच्चिय को वं किच्चा केवलनाणं हारियं' ति । तओ एवं पच्छातावं कुणतो अइकरुणारसमग्गो सो साहू सव्वलोगाणं थिरीकरण समुद्वाणसुयं परावडिं पारंभित्था । तस्स मज्झमि बहूई अल्हायजणगाईं सुत्ताईं संति । जाणं पहावाओ उब्वसंपि गामाइयं सज्जो सुवसं होज्जा । अह जहा जहा सो तं सुतं परावहिउं पवृत्तो तहा तहा पमुइया सव्वे वि लोगा नयरमज्झंमि समागया । राया वि सहरिसो सट्टाणं पत्तो, भयवत्ता सव्वा वि विणट्ठा, सव्वलोगो सुट्टिओ संजाओ । तओ तवसोसियसरीरो परमोवसमरसनिमग्गो दमसारो रिसी तया आहारं अघेत्तणं पच्छा वलिओ सविणयं पहुणो समीवे समागओ । तइया पहुणा वृत्तं - भो दमसार ! अज्ज चंपाए नयरीए भिक्खटुं गच्छमाणस्स तुव मिच्छादिवियणाओ कोहो समुप्पन्नो इच्चाई जाव उवसंतकोवो इहयं संपत्तो, एसो अट्ठो सच्चो ? । सो क्यासी - तहेव त्ति । पुणो पहुवीरेण वृत्तं- 'भो दमसार ! जो अम्हाणं समणो वा समणी वा कसायं उव्वहेइ सो दीहसंसारं विहेइ, जो उ उवसमं विहेइ, तरस संसारो अप्पो हवइ' । एयं वयणं सोच्चा दमसारो मुणी वयासी - भयवं ! मम उवसमसारं पायच्छित्तं देहि । तया पहुणा तवपडिपत्तिरूवं पायच्छित्तं दिण्णं । तओ दमसारो मुणी संजमेण तवसाय अप्पाणं भाविंत्तो विहरित्था । तओ तस्स साहुणो पमायजणिअं दोसं निंदमाणस्स गरिहमाणस्स य सुहज्झवसाएण सत्तमे दिवसे केवलं नाणं समु१. मुधैव
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दमसार रिसिणोकहा- १०२
॥१३७॥
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