Book Title: Paia Vinnan Kaha Trayam Part 02
Author(s): Kastursuri, Chandrodayvijay,
Publisher: Vijay Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
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पाइअविनाणकाप
॥१४२॥
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नियगुणहाणि विहायग-कोवस्सेत्थ कडुयं फलं नच्चा । भविया तुम्हे वि सया, उवसमगुणधारगा होह ॥ १०३॥ state asafaariमि विउसवरस्स तिउत्तरसयइमी कहा समत्ता ॥ १०३॥
- अखंडाणदाओ ।
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सम्मदंसणपहावंमि सुलसासाविगाए चउरुत्तरसयइमी कहा धन्नो सो नायव्वो, जो गुरुहियए वसेर निच्चपि । मुलसानायं इहयं सम्मदंसणपहावजुयं ॥ १०४॥ इह जंबूदीवंभि भरहवित्तम्मि मगहदेसंमि रायगिहं नाम नयरं, तर्हि पेसेणई नरवई रज्जं पसासेइ । तच्चरणसेवापरो नागनामो सारही आसी । तस्स पइव्वयत्तणाइपवरगुणगणालंकिया पहाणजिणधम्मानुरागिणी सुलसा नाम भज्जा आसि । एगया नागसारही कत्थवि गेहंमि कंचि गिवई पभूययरपमोएणं नियकंमि पुत्ते लालितं विलोइत्ता सेयं पुत्ताभावदुक्खेण दुहियमाणसो समाणो करयलंमि मुहं विन्नसित्ता चिंतित्था - 'अहो मंदभागो हं जं मम चित्ताणंददायगो एगो पुतो नत्थ ? धन्नो एसो जं एयस्स बहवो हिययाणंदजणगा पुत्ता संति' त्ति चिंतासागरे मग्गं नियप्पियं विलोइत्ता सुलसा विणमिरा महुरवायाए वयासी - 'सामि ! भवओ चित्तमि अज्ज का चिंत्ता पाउन्भूया ?' । सो as - 'पिए! अवरा उ का वि चिंता नत्थि । परं एगा पुत्ताभावचिंता वट्टेइ, सा य मं अच्चतं पिलेइ' । तओ पुणो सुलसा आह- 'सामि ! चिंतं मा कासी !, पुत्तुप्पायणत्थं सुहेण अवरकन्नापाणिग्रहणं विहेहि' । तइया नागो साहित्था -
१. प्रसेनजित् । २. स्वयम् ।
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सुलसासाॐ विगाए कहा- १०४
ক
॥ १४१ ॥
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