Book Title: Paia Vinnan Kaha Trayam Part 02
Author(s): Kastursuri, Chandrodayvijay,
Publisher: Vijay Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
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पाइअविम्नाणकहा
मरुदेवीए कहा-९८
॥१२३॥
वलियाई । एवं सहस्ससंखेसु वरिसेसुं गएसुं उसहसामिणो केवलनाणं समुप्पन्नं । चउसट्ठिसुरिंदेहिं समागच्च समवसरणं रइयं, भरहस्स उज्जाणपालेण वड्ढावणिया दिण्णा, भरहो वि समागंतूणं मरुदेवाए सिरिउसहदेवसरूवं साहित्था-तुं मम पइदिणं उवालंभं देसि, जं मज्झ अंगओ सीयायवाइपीलं अणुभवेइ, एगागी वर्णमि य वियरेइ त्ति । तओ अज्ज आगच्छसु मए सद्धिं ? तब पुत्तस्स महिइिंढ दावेमि इअ वयणसवणेण सोक्कंठं पियामहिं हत्थिर्खधंमि ठविऊणं सो समोसरणं समागच्छित्था । तहिं देवदुंदुहिनिणाय सोच्चा मरुदेवी अईव हरिसवई संजाया देवदेवीणं जयजयसई सुणिऊणं तीए रोमुग्गमो संजाओ, नयणाहिंतो हरिसंसूई निग्गयाइं, तव्वसेणं अच्छिगयतिमिररोगे अवगए तीए सव्वंपि पागारतिग-असोगच्छत्तचामराइसरूवं दिदै, अणुवमं पाडिहेराइयमहिडिंढ दळूणं मणंसि मरुदेवी एवं बियारिस्था--धिरत्थु इमं संसारं, धिद्धी मोह, अहं एवं वियाणियवई, जं मम णंदणो एगागी वर्णमि बुहुक्खिओ पिवासिओ परिभमंतो होही, परं इमो एयावति इढिं पत्तो वि कया बि मम संदेसयं पि न पेसित्था । अहं तु पइदिणं नंदणमोहेण अईब दुक्खिा संजाया, तो धिगत्थु कारिमं एगपाक्खियं सिणेहं, को पुत्तो ?, का माया ?, सव्वो वि इमो जणो नियत्थसाहणरसिगो, न को वि कास वि वल्लहो, इअ चिंतमाणी भावबिसुद्धीए घाइकम्मखएण केवलनाणं आसज्ज अंतमुहुत्तंमि खीणाउसा सा मोक्खे अव्वाबाहं सुहं पत्ता । एयाए ओसप्पिणीए अच्चंतथावरा एसा पढमसिद्धत्ति साहिऊणं तीए सरीरं देवेहिं खीरसमुद्दे खित्तं । अणेण केई वएइरे-तवसंजमाइविहाणं विणा जह मरुदेवा सिद्धा तहा अम्हे वि मोक्ख गच्छिस्सामोत्ति आलंबणं गिण्हंति एयालंबणं विवेगिहिं न गेझं जओ सा अच्चंतथावरा कयावि अपत्ततसभवा अबद्धातिव्वकम्मा अच्चंतलहुकम्मा आसि । तओ केवलविसुद्धभावणाए सिद्धा । अणंतजीवेसु मोक्खं गएसु एरिसो जीवो एगुच्चिय वियाणियब्यो।
॥१२॥
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