Book Title: Padmavati
Author(s): Mohanlal Sharma
Publisher: Madhyapradesh Hingi Granth Academy

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ : पद्मावती उज्जयिनी (उज्जैन) के रूप में पहचाना । किन्तु इस स्थापना से वह स्वयं सन्तुष्ट न हो सके और उन्होंने एक अन्य स्थापना को स्थान दिया जिसके अनुसार पद्मावती को वर्तमान औरंगाबाद अथवा बरार के आस-पास ठहराया गया । एक सम्भावना यह भी व्यक्त की गई कि यह कहीं विदर्भ (बरार) में स्थित पद्मापुर तो नहीं जिसका वर्णन कवि एवं नाटककार भवभूति ने किया है। किन्तु पद्मावती और पदमपुर के नामों में आंशिक ध्वन्यात्मक साम्य तो है, इससे अधिक कोई ऐतिहासिक साम्य नहीं तथा न इसका समर्थन ऐतिहासिक तथ्यों के द्वारा ही होता है । इसके पश्चात् विल्सन ने एक अन्य सम्भावना की ओर संकेत किया है जिसके अनुसार पद्मावती को वर्तमान भागलपुर के स्थान पर पहचाना गया है । यह गंगा के किनारे पर बसा हुआ था। किन्तु श्री विल्सन की एक भी धारणा सत्य न निकली। विष्णु पुराण में जिन तीन नामों का उल्लेख किया गया है, यथा, पद्मावती, कान्तिपुरी और मथुरा, उनके विषय में श्री कनिंघम द्वारा किया गया संकेत विशेष रूप से उल्लेखनीय है । उनके मतानुसार पद्मावती को मथुरा से बहुत अधिक दूर नहीं खोजना चाहिये। इस आधार पर उन्होंने श्री विल्सन की समस्त धारणाओं को असिद्ध कर दिया। उन्होंने पद्मावती को वर्तमान नरवर के रूप में पहचाना, जो कि मथुरा से लगभग १५० मील की दूरी पर स्थित है । ३ श्री कनिंघम की इस धारणा का एक आधार वे सिक्के थे, जो नागवंश के थे और नरवर के आस-पास मिले थे। दूसरे उन चार नदियों को भी यहीं पहचाना है जिनका उल्लेख मालती माधव में किया है । श्री कनिंघम को मालती माधव में उल्लिखित पद्मावती की भौगोलिक स्थिति का परिचय श्री विल्सन के द्वारा अनूदित मालती माधव के अंग्रेजी के अनुवाद के द्वारा हुआ होगा। यद्यपि कनिंघम की स्थापना श्री विल्सन की स्थापना से कहीं अधिक युक्तिसंगत है, किन्तु सत्य के निकट पहुँचकर भी यह धारणा सत्य नहीं हो पाई। यह बात तो मानी जा सकती है कि नरवर भी नागवंश की राजधानी पद्मावती के अन्तर्गत आता होगा। नागवंश के सिक्कों के मिलने का यही सबसे बड़ा कारण हो सकता है। किन्तु पद्मावती के स्थल की सही-सही पहचान करने में कनिंघम से तनिक सी भूल हो गई। इसका कारण यह है कि उन्होंने मालती माधव में वर्णित नदियों की स्थिति की ठीक-ठीक जानकारी प्राप्त नहीं की। हाँ , इस बात का श्रेय उन्हें अवश्य दिया जाना चाहिए कि वे भवभूति द्वारा इंगित सिन्धु, पारा, लवणा और मधुमती नदियों को वर्तमान सिन्धु, पार्वती, नून और महुअर नदियों के रूप में पहचान पाये । नदियों की सही-सही स्थिति को समझ कर पद्मावती को चिह्नित करने का कार्य ही शेष रह गया था जिसे श्री एम० बी० लेले ने पूरा कर दिया। उन्होंने 'मालती माधव-सार आणि विचार' नामक एक छोटी सी पुस्तक मराठी में लिखी है। सर्वप्रथम इस पुस्तक में उन्होंने यह संकेत किया है कि वर्तमान पवाया के स्थान पर अथवा उसके निकटवर्ती क्षेत्र पर १. थियेटर ऑव दि हिन्दूज, खंड २, मालती तथा माधव, पृष्ठ ६५ की टिप्पणी । २. विल्सन का विष्णु पुराण, पृष्ठ ४८० की टिप्पणी। ३. कनिंघम की सर्वेक्षण रिपोर्ट, खंड २, पृष्ठ ३०३ । For Private and Personal Use Only

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