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७२ : पद्मावती राजा हैं, उनके सिर पर मुकुट सुशोभित है। इस मूर्ति के ऊपर एक छत्र भी है जिसे खिले हुए कमल एवं पत्तों से सजाया गया है। मूर्ति संख्या २५२५, विष्णु के नृसिंह वराह विष्णु अवतार का बोध कराती है । बीच में विष्णु मुख और दोनों ओर नृसिंह तथा बराह अवतारों के मुख दर्शाये गये हैं। एक मूति ऐसी भी मिली है जिससे विष्णु के विराट रूप की झाँकी मिल जाती है । इनके अतिरिक्त मथुरा की मृणमूर्तियों में भी विष्णु को स्थान दिया गया है । इससे इस देवता के व्यापक और प्रभावशाली स्वरूप का परिचय मिलता है।
- पद्मावती और मथुरा के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर भी विष्णु की व्यापक रूप से उपासना की जाती थी। मूर्तियों में भी जो कि भारत के विभिन्न स्थानों पर मिलती हैं विष्णु के चतुर्भुजी स्वरूप को दर्शाया गया है। भारत के दक्षिण में जहाँ शिव को विशेष महत्व मिला वहाँ भी विष्णु को भुलाया नहीं जा सका। ६.३ शैवोपासना
जैसा कि पहले बताया जा चुका है इस युग में विष्णु और शिव दोनों ही देवताओं की उपासना होती थी। यह बता सकना बहुत कठिन है कि किस देवता की अधिक उपासना की जाती थी और किसकी कम । पद्मावती में तो विष्णु मन्दिर और विष्णु मूर्ति भी मिली है तथा भारशिवों द्वारा स्थापित किया गया शिवलिंग भी । भारशिवों ने तो शिव की उपासना के लिए अपने वंश के नाम में भी शिव को स्थान दिया था। वे स्वयं को शिव का नन्दी कहते थे । यही कारण है कि इनके सिक्कों पर भी नन्दी और वृष के दर्शन हो जाते हैं। सर्प जो कि शिव का आभूषण है, उसे भी स्थान मिल गया था। किन्तु नवनागों के राजाओं में भी हमें विष्णु और शिव के भक्त मिले हैं। कुछ राजाओं ने विष्णु की उपासना को विशेष महत्व दिया और कुछ ने शिव को। मध्यदेश के नाग ही नहीं वाकाटकों ने भी शिव को अपना देवता मान लिया था । शिव का यह प्रभाव इस युग में इतना व्यापक था कि कुषाण राजा भी अपनी मुद्राओं पर शिव-मूर्ति, त्रिशूल और नन्दी अंकित कराते थे। मथुरा और अवन्ति के शक क्षत्रप भी शिव के उपासक थे । लोक-जीवन में भी शिव की उपासना के चिह्न मिलते हैं । महाभारत में वासुदेव कृष्ण से भी शिव आराधना करायी गयी है । इस युग के साहित्य में भी शिव का गुणगान किया गया है । इसके अतिरिक्त मूर्तिकला एवं स्थापत्य कला में शिव को महत्वपूर्ण स्थान मिला था । नाग और वाकाटक काल में शिवमूर्ति और शिव मन्दिरों का निर्माण हुआ था । महाभारत में शैव उपासकों की दो श्रेणियाँ बतायी गयीं हैं, एक गृहस्थ और दूसरी साधक । शैव साधक पीले वस्त्र धारण करते थे और योग-साधना में अपना समय व्यतीत किया करते थे। महाभारत ने पूरे भारतवर्ष में फैले हुये शैव तीर्थों का उल्लेख किया है इससे इस विचार को आश्रय मिलता है कि शिव की उपासना बहुत व्यापक थी । पद्मावती के पूरे साम्राज्य में आराध्यदेव के रूप में भारशिवों ने शिव को सर्वोच्च स्थान प्रदान किया था। इस विषय में तो कोई सन्देह रह ही नहीं जाता। ६.४ धन का भण्डारी कुबेर
जैसा कि ऊपर उल्लेख किया जा चुका है, इस काल में माणिभद्र यक्ष के साथ ही
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