Book Title: Padmavati
Author(s): Mohanlal Sharma
Publisher: Madhyapradesh Hingi Granth Academy

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Page 89
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मावती के नवनागों की धर्म-साधना : ७१ हो जाती है। नागों के सम्बन्ध में तो यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि उनकी आस्था शिव और विष्णु दोनों में थी। नागों के अभिलेख और उनके मुद्रा-चिह्नों से भी उनकी आस्था का बोध हो जाता है। वे भारशिव होने के साथ-साथ चक्रपाणी विष्णु के परम भक्त थे । वैदिक युग के प्रारम्भ से ही समन्वयवाद की यह लहर दौड़ रही थी। कुछ नाग राजाओं की मुद्राओं पर हमें चक्र का चिह्न मिलता है। यह चक्र विष्णु के सुदर्शन चक्र के अतिरिक्त और क्या हो सकता है। विष्णु मूलतः तो सूर्य हैं। पद्मावती में विष्णु के मन्दिर के जो अवशेष मिले हैं उनमें विष्णु की प्रतिमा सूर्यध्वज तथा वहाँ के तोरणों पर अंकित पौराणिक कथाएँ इस बात का प्रमाण हैं कि नाग विष्णु के परम भक्त थे । शिव के नन्दी को जो स्थान मिला है विष्णु के चक्र को भी ठीक वैसा ही महत्वपूर्ण स्थान मिला है। हमें यह जान कर आश्चर्यमय प्रसन्नता होती है कि आज हमारे देश में जिस समन्वयवाद की आवश्यकता है नागों ने आज से लगभग १८०० वर्ष पूर्व उस समन्वयवाद के सही स्वरूप को समझा था और अपनाया था। इन्होंने हिन्दू धर्म की प्राण-प्रतिष्ठा करने में अभूतपूर्व योगदान दिया। दूसरे शब्दों में नवनागों को हिन्दू साम्राज्य के संस्थापक मान कर चलें तो कोई अनुचित बात न होगी। इस युग में हिन्दुओं पर एक विशेष संकट आ गया था। शकों ने हिन्दुत्व को नष्ट करने का भरसक प्रयत्न किया और उनकी राष्ट्रीयता की जड़ खोद डाली। उन्होंने सामाजिक क्रान्ति लाने का भी प्रयत्न किया। वास्तव में वे हिन्दू राजाओं की सैनिक शक्ति से नहीं घबराते थे, क्योंकि उस पर तो उन्हें विजय मिल ही गयी थी किन्तु उन्हें हिन्दुओं की सामाजिक प्रथा से बहुत डर लगता था। अतएव वे जनसाधारण को अपने धर्म में दीक्षित करना चाहते थे। वे धन के लोभी तो थे ही, हिन्दुओं पर अब्राह्मण धर्म को लादने के भी उन्होंने अनेक प्रयत्न किये । किन्तु नवनागों के समन्वयवाद ने उनकी पूर्ण रूप से रक्षा की, और धार्मिक सद्भावना के सम्बन्ध में उन्हें पूर्ण सफलता मिली। __ नागों के समय की विष्णु-मूर्ति मथुरा में मिली है। प्रो० कृष्णदत्त वाजपेयी ने इनको कृष्णकालीन बताया है। ये ऐसी मूर्तियाँ हैं जिनके विषय में यह कहा गया है कि ऐसी मूर्तियाँ भारत में अन्यत्र नहीं मिलती। इनमें विष्णु की चतुर्भुजी मूर्तियाँ भी हैं । एक इसी प्रकार की मूर्ति संख्या ६३३ के विषय में उनका मत है कि वह कृष्णकालीन बोधिसत्त्व प्रतिमाओं से मिलती-जुलती है । इसमें विष्णु के चारो हाथों में चार प्रकार के गुणों का समावेश हो जाता है । एक हाथ अभय मुद्रा में, दूसरे में अमृत घट, तीसरे में गदा और चौथे में पद्म। अमृत घट आनन्द की वर्षा करता है और जीवनी शक्ति प्रदान करता है । अभय मुद्रा के द्वारा वे भक्तों को अभय दान देते हैं । गदा उनके शासन का दण्ड है जिसके द्वारा वे दुष्ट शक्तियों का दमन करते हैं । मथुरा में प्राप्त विष्णु की एक अन्य मूर्ति की तुलना बोधिसत्त्व मैत्रेय से की जा सकती है। इसके अतिरिक्त विष्णु की दो अष्टभुजी मूर्तियाँ मिली हैं। ये भी कुषाणकालीन प्रतीत होती हैं, किन्तु ये मूर्तियां उत्कृष्ट कलाकृति की प्रतीक हैं । नागों के पश्चात गुप्तकाल में तो विष्णु की अत्यधिक उपासना की गयी। एक मूर्ति तो उनकी ऐसी मिली है जिनमें उन्हें बुद्ध की भाँति ध्यानमुद्रा में दिखाया गया है। वे For Private and Personal Use Only

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