Book Title: Padmavati
Author(s): Mohanlal Sharma
Publisher: Madhyapradesh Hingi Granth Academy

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Page 87
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मावती के नवनागों की धर्म-साधना : ६६ अश्व की आकृति थी और दूसरी ओर उन्होंने धराज स्क-पढ़ा था। उन्होंने इस सम्बन्ध में अपना मत व्यक्त किया था कि यह सिक्का स्कन्द नाग का होना चाहिए। इस बात से एक विशेष धारणा की पुष्टि होती है कि पद्मावती के नाग राजाओं में से एक-न-एक ऐसा राजा अवश्य हुआ जो अश्वमेधयाजी था। साँची के निकट अश्व की प्रस्तरमूर्ति बनाना उसी का कार्य होगा । चम्मक में प्रवरसेन द्वितीय का एक ताम्रपत्र मिला है जिसके द्वारा नागों के सम्प्रदाय और धर्म के सम्बन्ध में कुछ जानकारी मिल जाती है । वैसे नाग धर्म का आश्रय ले कर चले थे और उनके धर्म के सम्बन्ध में कोई दो मत नहीं हैं। वे जहाँ भी जाते थे वहीं शिवलिंग को अपने साथ ले जाया करते थे । पद्मावती में भी उन्होंने शिवलिंग की स्थापना कर दी थी। वे गंगा को पवित्र मानते थे। इस तत्व का निरूपण उनके सिक्कों के द्वारा भी हो जाता है। नागों के सिक्कों के अन्य चिह्न उन्हें शिव के परम भक्त तो घोषित करते ही हैं किन्तु इसके साथ ही उन्होंने विष्णु की उपासना को भी प्रधानता दी। उनके सिक्कों के मयूर, त्रिशूल, नन्दी तथा सिंह उनकी शिव-भक्ति के परिचायक हैं। यहाँ एक प्रश्न और उपस्थित होता है । क्या नाग राजा नागपूजक भी थे ? वैसे नाग-छत्र को उन्होंने अपनी मुद्राओं और मूर्तियों पर स्थान दिया है किन्तु नाग शिव के गले का हार बन कर आया है जो कि उनके आराध्य थे। आज भी हम अर्द्धचन्द्र को शिव के ललाट पर सुशोभित करते हैं। पद्मावती के भवनाग ने द्वितीया के चन्द्र को अपनी मुद्रा के चिह्न के रूप में अपनाया । पद्मावती पर स्वर्ण बिन्दु महादेव का मन्दिर मिला है। किन्तु उसकी मूर्ति नहीं मिल पायी है अतएव नवनागों के शिव का क्या स्वरूप था इसकी जानकारी के लिए कोई ठोस प्रमाण प्राप्त नहीं होता। ऊपर शिव और विष्णु के समन्वय के सम्बन्ध में लिखा जा चुका है। इतनी बात तो निस्सन्देह रूप से कही जा सकती है कि-शिव का अस्त्र-त्रिशूल था और विष्णु थे- चक्रपाणि युक्त । अनेक नाग राजा जहाँ शिव के भक्त थे वहाँ विष्णु में भी उनकी भक्ति कम नहीं थी। ऐसे राजाओं में अच्युत का नाम लिया जा सकता है जिसने अपना नाम ही विष्णु-भक्तिसूचक रखा था। इसके अतिरिक्त एक अन्य प्रमाण है-सुदर्शन चक्र जो कुछ राजाओं के सिक्कों पर मिलता है। भारशिव राजा सूर्य की उपासना करते थे। इसी कारण उन्होंने सूर्य-स्तम्भ शीर्षों का निर्माण कराया होगा। गंगा में भी उनकी अगाध भक्ति थी, जिसके पवित्र जल से उन्होंने अवभृथ स्नान किया था और राजगद्दी पर बैठे थे। साथ ही ताड़-वृक्ष को भी उन्होंने पवित्र स्थान दे कर अपने राजचिह्न के रूप में स्वीकार कर लिया था । विदिशा और पद्मावती दोनों स्थानों पर सुन्दर ताड़-स्तम्भ शीर्ष प्राप्त हुए हैं। इससे यही सिद्ध होता है कि पद्मावती के नवनागों का धर्म समन्वयपरक है । भारत ने आज जिस धर्म निरपेक्षता को अपनाया है उसकी कल्पना नागों ने बहुत पहले से कर ली थी। उन्होंने जिस भारतव्यापी धर्म का सृजन किया था, वह आज भी अक्षुण्ण बना हुआ है। ६.२ नागों की विष्णु-पूजा कहने के लिए तो नाग स्वयं को भारशिव कहने में विशेष गौरव का अनुभव करते For Private and Personal Use Only

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