Book Title: Padmavati
Author(s): Mohanlal Sharma
Publisher: Madhyapradesh Hingi Granth Academy

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Page 91
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मावती के नवनागों की धर्म-साधना : ७३ कुबेर की भी उपासना होने लगी थी । सार्थवाह धन प्राप्त करने के उद्देश्य से कुबेर की उपासना करते थे । कुबेर को यक्षों में सर्वशक्तिशाली समझा जाता है । इस काल में जो साहित्यसृजन हुआ है उसमें कुबेर को महाराज कहा गया है। कुबेर की उपासना करने वाले महाराजिक कहलाते थे। कौटिल्य का उल्लेख है कि कुबेर-मन्दिर किले के मध्य में स्थापित होता था। कुबेर के मन्दिरों का निर्माण तो होता ही था, विदिशा में कुबेर के मन्दिर होने का उल्लेख डॉ० मोती चन्द्र ने किया है। कुबेर के मन्दिर धनधान्य से पूर्ण होते थे । कुबेर के उपासक इनमें बहुत अधिक धन अर्पित करते थे । सम्पूर्ण समाज यक्षों को विशेष कर माणिभद्र और कुवेर को बड़ा उच्च स्थान दिया करता था। कहीं-कहीं तो कुबेर को ब्रह्म और राजा का पर्याय तक माना गया है । समाज में यह धारणा अत्यधिक बलवती थी कि कुबेर के पास अलौकिक शक्तियाँ होती हैं। यक्षों को विद्या का देवता भी बताया गया है। समाज में बड़े-बड़े आचार्यों को यक्ष की उपमा दी जाती थी। उपनिषदों में भी यक्ष को ब्रह्म कह दिया गया है । यक्षों की इस सर्वव्यापी उपासना के कारण ही विदिशा, पद्मावती एवं मथुरा में यक्ष और कुबेर की मूर्तियाँ मिली हैं, जिससे यह सिद्ध होता है कि इन स्थानों पर उसके उपासकों की संख्या बहुत अधिक थी। ६.५ सार्थवाहों के आराध्य यक्ष इस युग में, समाज में शिव और विष्णु के उपासक तो थे ही, सार्थवाहों के समाज में यक्ष को विशेष स्थान मिला था। पद्मावती में प्राप्त माणिभद्र यक्ष की चरणचौकी पर अंकित लेख में इस बात का उल्लेख किया गया है कि शिवनन्दी के समय में नगरजन समुदाय ने मिल कर इस यक्ष की स्थापना की थी। पद्मावती तत्कालीन महापथों का एक विशाल केन्द्र थी। एक प्रकार से यह अन्तर्राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित थी । आते-जाते यात्रीगण यक्ष की उपासना करते थे और व्यापारिक लाभ प्राप्त करने और अपनी यात्रा को सुगम बनाने के लिए यक्ष पर बहुत-सा धन चढ़ाते थे। डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल के मतानुसार नाविकों की देवी मणिमेखला थी और स्थल पर चलने वाले सार्थवाहों के अधिष्ठाता देवता माणिभद्र यक्ष थे। डॉ० अग्रवाल यहाँ तक कहते हैं कि माणिभद्र यक्ष की पूजा के मन्दिर सारे उत्तरी भारत में बने हुए थे । नागों की दूसरी राजधानी मथुरा के अन्तर्गत 'परखम' नामक स्थान से एक महाकाय यक्ष कीमति मिली है। यह यक्ष माणिभद्र यक्ष ही है। पद्मावती में तो माणिभद्र यक्ष की पूजा का बड़ा केन्द्र होना ही चाहिए और यह एक विशाल तीर्थ-स्थान रहा होगा। दूसरे महापथों के केन्द्र पर स्थापित होने के कारण सार्थ वहाँ आते-जाते इसकी पूजा करते होंगे । जो सार्थ उत्तर भारत से दक्षिण भारत में यात्रा करते थे तथा जो दक्षिण से उत्तर में जाया करते थे वे माणिभद्र यक्ष की मान्यता में विश्वास करके इसको पूजते होंगे । महाभारत के वन-पर्व में भी एक ऐसा प्रसंग आया है जिसमें इस बात का उल्लेख किया गया है कि माणिभद्र यक्ष का स्मरण एक सार्थ के उन सदस्यों ने संकट निवारण के लिए किया था जो कि दमयन्ती को मिले थे। यहाँ इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि सार्थों पर जब वास्तविक संकट उपस्थित हुआ तो उन्होंने माणिभद्र यक्ष के साथ-साथ कुबेर का भी स्मरण किया। यह बात तो निश्चय के १० For Private and Personal Use Only

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