Book Title: Padmavati
Author(s): Mohanlal Sharma
Publisher: Madhyapradesh Hingi Granth Academy

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Page 94
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७६ : पद्मावती था। ऐसे स्थानों में विशेषकर मध्यदेश का नाम उल्लेखनीय है। इसी सम्बन्ध में मध्यदेश के भेड़ाघाट के एक शिलालेख का उल्लेख किया गया है। यह नागकाल के पहले का बताया जाता है। यह साधारण ब्राह्मी लिपि में है। इस काल में ब्राह्मी लिपि की विशेषकर 'इ' की मात्रा का विकास हुआ । हलन्त के चिह्न का प्रयोग भी इसी युग की देन प्रतीत होती है । इसी प्रकार इस युग में 'उ' की मात्रा भी स्पष्टतर होती है। इसी युग में 'र' का रेफ भी पंक्ति के ऊपर रखा जाने लगा था। मात्राओं में शनैः-शनैः तिरछापन भी आने लगा था। देवनागरी के वर्तमान 'ढ' की रचना भी इसी युग की देन प्रतीत होती है। अतएव यह कहा जा सकता है कि नागरी लिपि' के परिष्कृत रूप की रचना का शुभारम्भ इसी युग से होता है । ६.६ पद्मावती : एक पर्यवेक्षण ___ पद्मावती की उक्त चर्चा के द्वारा तत्कालीन समाज के राजनैतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक जीवन का एक आदर्श चित्र हमारे सम्मुख उपस्थित होता है। जैसा कि उल्लेख किया जा चका है—भारशिवों का राज्य एक प्रजातांत्रिक संघ-राज्य था। सम्पूर्ण समाज का कल्याण व्यक्ति के कल्याण पर आधारित था। व्यष्टि और समष्टि के कल्याण में कोई मूलभूत अन्तर नहीं था। समाज व्यक्ति के लिए था और व्यक्ति समाज के लिए। राज्य व्यक्ति की उन्नति की आधार-शिला मान कर चलता था। नवनाग वंश के सभी राजा कला-प्रेमी थे। उनके राज्य में धन का किसी प्रकार अभाव नहीं था। उन्होंने अपने और समाज के जीवन में धार्मिक प्रवृत्तियों को विशेष प्रश्रय दिया। उन्होंने सादा और त्यागशील जीवन को आदर्श मान कर अपने व्यहार को उसी के अनुसार बना दिया। उनके समय में पद्मावती ने अपने चरमोत्कर्ष के दिन देखे थे। ऊँचे-ऊँचे भवनों से सुशोभित यह अनुपम नगर आज केवल कल्पना मात्र रह गया है। मुख्य मार्ग पर स्थित होने के कारण इस नगर की ख्याति उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक फैल गयी थी। पद्मावती उस समय के एक आदर्श समाज का चित्र प्रस्तुत करता है । व्यक्ति को गौरवमय स्थान मिला हुआ था । वह स्वेच्छानुसार धर्म का आचरण कर सकता था । कोई व्यक्ति किस धर्म का पालन करे, इसका सम्पूर्ण निर्णय उसी पर निर्भर था। पद्मावती अन्य धर्मों को उचित स्थान देते हुए भी एक आदर्श हिन्दू राज्य का चित्र प्रस्तुत करता है। पद्मावती शिक्षा का महान केन्द्र था। यहाँ भारत के अन्य राज्यों से अध्ययन करने के लिए छात्र आया करते थे । नदियों के संगम पर स्थापित इस नगर को प्रकृति का वरदान तो मिला ही हुआ था, यहाँ ज्योतिष, दर्शन, धर्मशास्त्र एवं साहित्य आदि की विशेष शाखाओं की उच्च शिक्षा प्रदान की जाती थी। इसका बोध हमें 'मालती-माधव' के उल्लेख द्वारा हो जाता है, जो न्याय-शास्त्र का अध्ययन करने के लिए विदर्भ से पद्मावती आया था । शिक्षा का केन्द्र होने के कारण पद्मावती समस्त देश के लिए एक आकर्षण का केन्द्र बन गयी थी। उसकी ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी थी। ज्ञान के प्रचार एवं प्रसार में राज्य का पूरा-पूरा योगदान रहता ही था, व्यक्तियों के सामाजिक संगठन की दृष्टि शिक्षा पर भी केन्द्रित रहती थी, इसके भी प्रमाण मिलते हैं । For Private and Personal Use Only

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