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५० : पद्मावती करने वाले अन्य कला के इन अभिप्रायों के अतिरिक्त इनसे इतर अभिप्राय भी उस स्वरसंघात की ही उपज हैं, जो इस प्रदेश के निवासी के हृदय में गूंज रहा था जिससे उसने इन निर्माणों की प्रेरणा ग्रहण की और जिनकी ललित मुद्राएँ इस युग की साज-संगीत साधना की मूर्तिमयी मूर्छनाएँ हैं । ४.७ विष्णु-मूर्ति
___ पवाया में जो विष्णु की मूर्ति मिली है उसमें चार भुजाएँ हैं । नीचे का दाहिना हाथ अभय-मुद्रा का सूचक है और ताड़ पर अंकित पद्म ग्रहण किये हुए है। ऊपर का दाहिना हाथ गदा को ग्रहण किये हुए है। ऊपर के बायें हाथ में चक्र है। यह हाथ ऊँचा उठा हुआ है । नीचे वाले बायें हाथ में शंख है। इस मूर्ति के सिर पर मुकुट है। किन्तु सिर और मुख दोनों ही विखण्डित हो गये हैं । इस मूर्ति के शरीर पर आभूषण भी हैं । गले में हार सुशोभित है और हाथों में कंगन । कमर में फेटा बँधा हुआ है और एक अंगोछा पहने हुए हैं जो बायें कन्धे से ले कर दोनों जाँघों पर होकर जाता है । इस मूर्ति की पूरी टाँगें नहीं मिल पायी हैं, केवल घुटने तक का ही भाग उपलब्ध है । विष्णु की इस मूति के विषय में यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि खुदाई में जो विष्णु मन्दिर मिला है यह मूर्ति उसी मन्दिर की होगी । यह मूर्ति विष्णु की उपासना के प्रचलन को तो सिद्ध करती ही है साथ ही यह तत्कालीन मूर्तिकला का एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करती है। इस मूर्ति के द्वारा नागकालीन मूर्तिकला की उत्कृष्टता सिद्ध हो जाती है।
__ तत्कालीन समाज में शिव की उपासना को अधिक मान्यता मिली थी, किन्तु विष्णु की उपासना करने वाले भी अनेक भक्त थे, विष्णु मन्दिर की यह मूर्ति यही सिद्ध करती है । गुप्तकाल में तो विष्णु की अत्यधिक उपासना की गयी थी। विष्णु-लोक का भरण-पोषण करने वाले देवता हैं । देवता ही क्यों अन्य सभी देवताओं के राजा हैं । सीधे तन कर खड़े हो जाते हैं । वे अच्छे वस्त्र और आभूषण पहनते हैं । अपनी प्रजा के राज्य पर वीरतापूर्वक शासन करते हैं । युद्ध में उनका कोई सामना नहीं कर सकता। सुदर्शन चक्र उनके साम्राज्य का लक्षण है । चक्र के ही द्वारा उन समस्त दुष्ट शक्तियों को तहस-नहस कर दिया जाता है जो विष्णु के साम्राज्य पर आक्रमण करने का साहस करें। उनके हाथ का शंख विजय की घोषणा करने वाला है। गदा शासन के दण्ड का कार्य करती है। राज्य की कोई आन्तरिक शक्ति कभी राजा के विपरीत कार्य नहीं कर सकती। एक हाथ में कमल इस बात का सूचक है कि प्रजा में धनधान्य सम्पन्नता और आनन्द की वृद्धि हो ।
पद्मावती पर गुप्त साम्राज्य की स्थापना हो चुकी थी। प्रजा में विष्णु के प्रति अत्यधिक आस्था जग चुकी थी। समुद्रगुप्त ने विष्णु की उपासना राजसी देवता के रूप में की थी। विष्णु के प्रति उसकी भक्ति को देख कर ऐसा प्रतीत होता है, कि जैसे स्वयं उसका व्यक्तित्व ही विष्णु में विलीन हो गया हो। यह भी कहा जा सकता है कि जितनी श्रद्धा राजा की विष्णु में रही होगी, उससे कम प्रजा में भी न होगी । विष्णु की भक्ति न केवल तत्कालीन धार्मिक और आध्यात्मिक चिन्तनशील समाज का चित्र प्रस्तुत करती है वरन् यह
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