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५८ : पद्मावती सूचक है। ये राजा बलि चढ़ाने वाले थे एवं प्रजा-पालक थे । सिक्कों में अंकित दात शब्द नागवंशीय राजाओं के इसी गुण को द्योतित करता है ।
भारशिव राजाओं का कौशाम्बी की टकसाल का एक ऐसा सिक्का मिला है जिसके विषय में इतिहासकार और मुद्राशास्त्र के ज्ञाता एक मत नहीं हो पाये हैं। इस सिक्के में प्राचीन लिपि में कुछ अंकित है, इसके विषय में मतभेद है । यह 'देव' और 'नवस' दो रूपों में पढ़ा गया है। इन अक्षरों के ऊपर एक नाग या सांप का चिह्न अंकित है जो फन फहराये हुए है। यह नवनाग का सिक्का बताया जाता है । सिक्के पर अंकित ताड़ का चिह्न एक दूसरा प्रमाण है जो यह सिद्ध करता है कि यह नागवंश का सिक्का होगा । ताड़ का चिह्न तो नागों के अन्य स्मृति चिह्न पर अंकित चिह्न से भी मेल खाता है । इनमें विशेष रूप से उल्लेख्य है-ताड़स्तम्भ शीर्ष । अभी तक इस विषय में निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि यह राजा जिसके सिक्कों के प्रसार का क्षेत्र इतना विशाल है कौन राजा था ? राजा का नाम कुछ भी हो, इतना निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि यह प्रभावशाली राजा होगा । इसके सिक्कों को डॉ० विन्सेट स्मिथ ने 'अनिश्चित राजाओं के सिक्कों' के वर्ग में रखा है। इसके सिक्कों का सम्बन्ध नाग सिक्कों से स्थापित होता है।
कौशाम्बी के सिक्के भारशिव राजाओं के सिक्के हैं । पुराणों में इन राजाओं को नवनाग या नवनाक वंशीय बताया है। भारशिव इन्हीं नागवंशीय राजाओं की राजकीय उपाधि थी। इन भारशिव राजाओं के सिक्कों की लिपि की तुलना हुविश्क वासुदेव के सिक्कों के अक्षरों से की जा सकती है । इसके आधार पर ये दोनों समकालीन सिद्ध होते हैं।
वीरसेन के सिक्के जो अधिकांशतः उत्तर भारत और पंजाब में मिले हैं, ऐसे सिक्के हैं जिन पर पद्मावती के नागों का सुपरिचित स्मृति चिह्न ताड़-वृक्ष अंकित मिलता है । ये सिक्के प्राय: चौकोर और आकार में अपेक्षाकृत छोटे होते हैं । इन सिक्कों पर सामने ताड़ का वृक्ष होता है और पीछे सिंहासन पर बैठी हुई मूर्ति होती है जिसके विषय में पहले लिखा जा चुका है कि यह मूर्ति गंगा की होती है। श्री कनिंघम ने भारशिव के एक अन्य प्रकार के सिक्के का भी उल्लेख किया है, जिसमें एक व्यक्ति को मूर्ति है। यह व्यक्ति बैठा हुआ दिखाया गया है । विशेष बात यह है कि यह व्यक्ति खड़े हुए नाग को हाथ में लिये हुए है। प्रो० रैप्सन ने इसी राजा के एक ऐसे सिक्के का उल्लेख किया है जिसमें एक ऐसी स्त्री की मूर्ति है जो सिंहासन पर छत्र धारण किये हुए बैठी हुई है। इसमें सिंहासन से नीचे वाले भाग से नाग छत्र तक गया है । इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि नाग छत्र की रक्षा कर रहा है । स्त्री की मूर्ति तो गंगा की ही प्रतीत होती है। इसमें ताड़ का वृक्ष भी बनाया गया है और नवनागों के सिक्कों पर जिस प्रकार समय दिया गया है वैसा ही इसमें भी दिया गया है । कनिंघम ने इस सिक्के को अहिच्छत्र की टकसाल में ढला हुआ माना है। इसी प्रकार का एक सिक्का पद्मावती की टकसाल में भी ढला हुआ बताया गया है जिस पर 'महाराज व
१. जनरल कनिंघम कृत-कॉइनस ऑव ऐन्शियेन्ट इण्डिया प्लेट ८, क्रमांक १८ । २. प्रो० रैप्सन कृत--जर्नल रॉयल एशियाटिक सोसायटी, सन् १६००, पृष्ठ ६७ के
सामने वाली प्लेट, क्रमांक १५।
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