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अध्याय पांच पद्मावती का वास्तु-शिल्प ५.१ प्राचीन इंटें
__अनेक स्थानों पर पवाया के अति निकट और कुछ दूरी पर जमीन में दबे हुए प्राचीन ईंटों के टुकड़े मिले हैं। इसके साथ ही कई स्थानों पर जमीन में दबी हुई ईंट की दीवारों के अवशेष तक मिले हैं। इन प्राचीन ईंटों का उपयोग तो निकटवर्ती गांवों के लोग बहुत समय से करते आ रहे हैं । आस-पास के कई गांवों में पुरानी ईंटें मिली हैं। जिन गाँवों में ये ईंटें सर्वाधिक मात्रा में पहुंची हैं-वे गाँव हैं, पाँचोरा और छिदोरी। कहने के लिए तो ये दोनों गाँव नदी के दूसरी ओर हैं किन्तु ईंटें नदी पार कर के पहुँच गयीं। इन गांवों के अतिरिक्त पवाया के वर्तमान किले में भी इस प्रचीन सामग्री का उपयोग किया गया है । यद्यपि पवाया का वर्तमान किला इतना प्राचीन नहीं जितने अन्य अवशेष । किला मुस्लिम युग में बना प्रतीत होता है किन्तु उसमें उन प्राचीन ईंटों का उपयोग अवश्य किया गया है। प्राचीनता का यह ऋण उसके ऊपर आज भी चढ़ा हुआ है । इन ईंटों के द्वारा ही अनेक शताब्दियों पूर्व निर्मित प्राचीन काल के अनेक निर्माण कार्यों की झांकी मिल जाती है जिन्हें तोड़ कर इन ईंटों को प्राप्त किया गया होगा। 'खण्डहर बता रहे हैं इमारत बुलन्द थी' वाली उक्ति पद्मावती के विषय में पूर्णरूपेण चरितार्थ होती है।
पवाया, पाँचोरा और छितोरी गाँवों में जिन प्राचीन इंटों के नमूने मिले हैं वे इन तीनों स्थानों पर एक ही प्रकार के हैं। इन प्राचीन ईंटों का आकार भी बड़ा है। इनकी लम्बाई १६ इंच, चौड़ाई १० इंच और मोटाई ३ इंच हैं। आज जिस आकार की नवीन ईंटें बन रही हैं ये प्राचीन इंटें उनसे कई गुनी हैं । किन्तु इन प्राचीन ईंटों का आकार एक ही है। इससे यह बात सिद्ध होती है कि ये किसी-न-किसी साँचे की बनी होंगी, जिसका आकार समान रहा होगा। ५.२ पद्मावती का दुर्ग
अभी ऊपर पद्मावती के ऐसे अवशेषों की चर्चा की गयी है जिनका समय ईसवी की प्रथम अथवा द्वितीय शताब्दी से ले कर सातवीं अथवा आठवीं शताब्दी तक का ठहरता है । किन्तु कुछ अवशेष इस काल के बाद के भी हैं। इनमें से विशेष रूप से उल्लेखनीय तो वह किला है जिसका घाट पत्थर का बना हुआ है और जो नदी के किनारे बनाया गया था।
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