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पद्मावती का वास्तु-शिल्प : ६३ रचनाकाल और धूमेश्वर महादेव के मन्दिर के रचना काल में कोई विशेष अन्तर नहीं होना चाहिए। ५.४ पद्मावती का विष्णु मन्दिर
पद्मावती में जितने अवशेष अब तक मिले हैं उन सब में किसी नाग राजा द्वारा बनवाया हुआ विष्णु मन्दिर विशेष महत्व का है। यह मन्दिर तत्कालीन सामाजिक इतिहास के कई छिपे हुए तथ्यों को प्रगट करता है, साथ ही उस सामाजिक धर्म-साधना की ओर भी संकेत करता है जो उस समाज में अविच्छिन्न रूप से प्रचलित रही होगी। इस मन्दिर के अनावरण से जो प्रश्न खड़े हो गये हैं उनकी इतिहासकारों ने विस्तारपूर्वक चर्चा की है । १
यह मन्दिर आज तक किस रूप में सुरक्षित रह पाया यह भी बड़े कौतूहल की बात है। ऐसा प्रतीत होता है कि जिस राजा ने पद्मावती को जीता होगा उसने ही इस विष्णु मन्दिर को इस प्रकार से छिपाने की व्यवस्था की होगी। किन्तु अभी तक इस बात की जानकारी नहीं मिल सकी है कि प्राचीन मन्दिर को नवीन निर्माण के अन्दर दबा देने का कारण क्या था ? यह निर्माण मूलतः दो विशाल चबूतरों के रूप में था जो एक के ऊपर एक थे। दोनों चबूतरे वर्गाकार आकृति के हैं । दोनों चबूतरों में चूंकि केवल इतना अन्तर है कि ऊपर के चबूतरे की लम्बाई ५३ फुट तथा नीचे के चबूतरे की लम्बाई ६३ फुट है।
जब तक उत्खनन कार्य पूर्णरूपेण सम्पन्न नहीं हो जाता तब तक इस मन्दिर तथा अन्य निर्माण के विषय में निर्णायक विचार बना पाना सम्भव नहीं है। किन्तु उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर इतना तो सरलतापूर्वक कहा जा सकता है कि एक पूर्वकालीन निर्माण विद्यमान था। कालान्तर में उसके ऊपर एक चबूतरा और जोड़ दिया गया जिसका आकार उससे बड़ा था । यह नवीन चबूतरा लम्बाई में १४३ फुट तथा चौड़ाई में १४० फुट था। इसमें नये चबूतरे के जोड़ देने का प्रधान कारण क्या रहा होगा यह निसंदिग्ध रूप से नहीं कहा जा सकता है। इस विषय में कई सम्भावनाएँ हैं । पहली और बड़ी सरल-सी सम्भावना तो यही प्रतीत होती है कि इस नये चबूतरे को केवल विस्तार में वृद्धि करने के लिए जोड़ दिया गया हो । किन्तु इस प्रकार का निष्कर्ष निकालने में केवल एक ही कठिनाई उपस्थित होती है । वह यह कि प्राचीनतर और नीचे वाला चबूतरा अलंकृत था किन्तु बाद में जोड़ा गया चबूतरा नितान्त सादा है। एक सम्भावना यह भी लगती है कि इस नये घेरे को निर्माण के लिए आवश्यक समझा गया हो । किन्तु ऐसे स्पष्ट लक्षण दृण्टिगोचर नहीं होते जिनके द्वारा यह सिद्ध हो कि वास्तव में निर्माण की आवश्यकता अनुभव की गयी होगी। इसका एक कारण और भी है कि बीच वाले चबूतरे का कोई भाग टूटा-फूटा अथवा निकला हुआ नहीं था।
१. श्री मो० बा० गर्दे-दि साइट ऑफ पद्मावती-भारत की पुरातत्त्वीय सर्वेक्षण
रिपोर्ट-सन् १९१५-१६ पृष्ठ १०१-१०६ तथा मध्य भारत का इतिहास पृष्ठ ६००।
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