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६६ : पद्मावती
नाग शिवोपासक थे। शिव की अनेक मूर्तियाँ मथुरा में भी मिली हैं। जिन कुषाण शासकों के सिक्कों पर नन्दी सहित शिव की एक या कई मुख वाली मूर्तियाँ मिलती हैं उनमें विमकैडफाइसिस, वासुदेव एवं कनिष्क तृतीय के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। मथुरा से कुषाणकालीन एक शिवलिंग की भी प्राप्ति हुई है। शक लोग इसकी पूजा करते रहे हैं। शिवलिंग न केवल कुषाणकालीन अपितु गुप्तकालीन भी मिले हैं। किसी-किसी मूर्ति में शिव
और पार्वती को नन्दी के सहारे खड़ा दिखाया गया है । एक चतुर्भुजी शिव की मूर्ति भी मिली है । एक अन्य मूर्ति में शिव-पार्वती को कैलाश पर्वत पर बैठे दिखाया गया है। उसके नीचे रावण की मूर्ति है जो पहाड़ को उठा रहा है । पहाड़ का एक कोना ऊपर उठ गया है।
शिव और पावती के अन्य रूप भी इन मन्दिरों में पाये जाते हैं, मथुरा में एक मूर्ति ऐसी मिली है जिसमें शिव क्रुद्ध-भाव में दिखाये गये हैं। यह शिव का रौद्र रूप है। इसी मूति में पार्वती को भयभीत मुद्रा में दिखाया गया है। कला की दृष्टि से ये मूर्तियाँ अत्यन्त उत्कृष्ट बन पड़ी हैं।
भूमरा के अतिरिक्त विन्ध्य क्षेत्र से गुप्तकालीन अन्य मन्दिर भी मिले हैं। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि मध्यदेश में शिव की उपासना का क्षेत्र बड़ा विशाल था। ये सभी मूर्तियाँ ईसा की पहली शताब्दी की देन हैं । इन सभी में नागों, कुषाणों और गुप्तों का अमिट प्रमाण प्रतिलक्षित होता है। ५.६ मुस्लिम मकबरे
इतिहास साक्षी है कि पवाया पर मध्ययुग में मुस्लिम शासकों का आधिपत्य हो गया था। मध्ययुगीन मुस्लिम शासक सिकन्दर लोदी ने ग्वालियर, चंदेरी और नरवर के साथ-साथ पद्मावती पर भी अपना आधिपत्य जमा लिया था। यह अधिकार उसे परमारों से प्राप्त हुआ था। मुस्लिम शासकों ने अपनी सभ्यता और संस्कृति की छाप कतिपय इमारतों के रूप में पद्मावती पर छोड़ी है । मुस्लिम इमारतों का अपना एक ढंग होता है। इमारतों के गुम्बदों के रूप में इसकी प्रतीति एक सहज कार्य है। मस्जिद उनकी धार्मिक इमारत होती है । जहाँ भी मुसलमानों की कुछ इमारतें होंगी वहाँ एक न एक मस्जिद अवश्य होगी। प्राचीनकाल में तो धर्म का प्रचार कार्य मुसलमानों के द्वारा इतनी अधिक मात्रा में किया गया कि हिन्दुओं के स्मारकों को नष्ट करके उन्होंने मुस्लिम इमारतें बनवायीं। पद्मावती में भी जो मकबरे बने हैं उनमें प्राचीन ईटों का उपयोग किया गया है । सम्भव है जहाँ आज मुस्लिम मकबरे बने हए हैं वहाँ इनसे पहले कोई हिन्दू स्मारक रहा हो ।
पवाया से कुछ ही दूरी पर लगभग पाँच मकबरे हैं जो आज भी मध्य युग की कहानी कह रहे हैं । इसी स्थान पर एक मस्जिद भी है । इन सभी मकबरों में पुरानी ईंटें लगवायी गयी हैं । ये चूने से चिनी हुई हैं । ये ईंटें तो ईसा की प्रारम्भिक शताब्दियों की बनी प्रतीत होती हैं । इमारतों के गुम्बद मात्र ही मध्ययुगीन प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। जैसा कि अभी कहा जा चुका है पद्मावती के विषय में यह धारणा निर्मूल नहीं है कि मुसलमानों ने कई प्राचीन सुन्दर इमारतों को नष्ट-भ्रष्ट करके अपने ये मकबरे बनवाये होंगे । कला का यह
१. डॉ. कृष्णदत्त वाजपेयी-मथुरा-पृष्ठ ३१ ।
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