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पद्मावती के ध्वंसावशेष : ५६ (वि)' लिखा हुआ है । इस पर मोर का चित्र भी है। मोर को वीरसेन अथवा महासेन देवता का वाहन बताया गया है। डॉ० जायसवाल ने इन सिक्कों के आधार पर यह परिणाम निकाला है कि ये सभी सिक्के हिन्दू सिक्कों के ढंग के हैं। इससे लगता है वीरसेन ने कुषाणों के ढंग के सिक्कों का परित्याग करके हिन्दू ढंग के सिक्के बनवाये थे ।
वीरसेन के सिक्कों का भारशिव राजाओं के सिक्कों से घनिष्ठ सम्बन्ध है । भवनाग के सिक्कों के आधार पर डॉ० जायसवाल इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि भवनाग से पूर्व उसके वंश में कई अन्य राजा राज कर चुके थे। सिक्कों से यह भी पता चलता है कि इनका वंश आगरा व अवध के संयुक्त प्रान्तों में राज करता था। इसका कारण उन्होंने बताया है कि इन स्थानों पर उसके बहुत अधिक सिक्के निकले हैं। इन राजाओं की कौशाम्बी में एक विशेष टकसाल रही होगी।
पद्मावती में जो नवनागों के सिक्के बहुत बड़ी मात्रा में मिले हैं और जो ग्वालियर के संग्रहालय में सुरक्षापूर्वक रखे हैं, उनके अतिरिक्त कलकत्ते के भारतीय संग्रहालय में भी कुछ सिक्के संगृहीत हैं। संग्रहालय के दसवें विभाग के चौथे उप-विभाग में सिक्कों का विवरण मिलता है । इन सिक्कों पर विचार करने पर इनके कुछ विशेष लक्षण प्राप्त होते हैं : इन सिक्कों में से कुछ पर कठघरे में पांच शाखाओं वाला वृक्ष मिलता है । ये सभी एक ही वर्ग के हैं और उनके विषय में विशेष बात यह है कि उन पर समय या संवत् दिया हुआ है । डॉ० स्मिथ ने एक सिक्के पर त्रय नागस पढ़ा था। इस सिक्के पर भी वही वृक्ष अंकित है। इसमें 'त्र' कठघरे के नीचे वाले भाग से प्रारम्भ होता है। डॉ० जायसवाल ने इस 'त्र' से पूर्व किसी अन्य अक्षर की सम्भावना की ओर संकेत किया है। किन्तु यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता। डॉ. स्मिथ ने नागस शब्द दिया है किन्तु डॉ० जायसवाल का मत है कि यह नागस न हो कर नागस्य है। पीछे की ओर शेर के ऊपर सूर्य और चन्द्रमा अंकित हैं । एक सिक्के पर चरज लिखा हुआ है । इससे प्रतीत होता है कि यह सिक्का चरज नाग का होगा । उसके राजगद्दी पर बैठने का संवत् २२ दिया हुआ है । इनमें से एक सिक्के पर हयनागश लिखा मिला है । इससे सिद्ध होता है कि यह सिक्का हयनाग का होना चाहिए । पीछे की ओर वाले हिस्से में डॉ. स्मिथ ने ऊपर वाले चिह्न को त्र पढ़ा था और नीचे वाले चिह्न को 'ब' पढ़ा था। किन्तु डॉ० जायसवाल का संकेत है कि ये दोनों अर्थात् 'ब' और 'त्र' मिल कर साँड का चिह्न बनते हैं । इस सांड के नीचे कोई अक्षर नहीं हैं । पीछे की ओर का लेख इस प्रकार है-श्री हयनागश-३० ।
पद्मावती के नागकालीन सिक्कों के विषय में डॉ० अल्टेकर की यह धारणा सही है कि भारशिवों के ये सिक्के ताँबे के बने हुए हैं और मालवों के सिक्कों की भाँति भार में हलके और आकार में छोटे होते हैं, इनके एक ओर तो कोई आख्यान अंकित होता है और दूसरी ओर मयूर, त्रिशूल, साँड़ या नन्दी का चिह्न अंकित होता है । इन सिक्कों से विशेष कर शिवत्व की झलक किसी-न-किसी रूप में मिल ही जाती है। नागकालीन राजाओं का
१. कनिंघम कृत-कॉइन्स ऑव मिडियवल इण्डिया, प्लेट २, चित्र संख्या १३,१४ ।
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