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५६ : पद्मावती
जो एक-दूसरे की ओर पीठ किये हुए हैं। यह स्तम्भ पवाया नामक गांव के निकट एक खेत में पड़ा मिला था। सूर्य-स्तम्भ की दोनों मूर्तियों के बीच में एक चक्र अथवा प्रभा मण्डल बनाया गया है। यही अनुमान करना उचित प्रतीत होता है कि यह चक्र अथवा प्रभा मण्डल सूर्य देव का प्रतीक होगा । ये दो मूर्तियाँ सूर्य देव के दो पक्षों का बोध कराती हैं । एक प्रातःकालीन सूर्योदय का दूसरी सायंकालीन सूर्यास्त का। किन्तु खेद तो इस बात का है कि इन दोनों स्तम्भ-शीर्षों, एक ताड़-स्तम्भ शीर्ष और दूसरे सूर्य-स्तम्भ शीर्ष के स्तम्भों की खोज नहीं की जा सकी। हाँ, इस बात का प्रमाण मिलता है कि इनमें स्तम्भ लगे हुए थे, क्योंकि उनके टूट जाने के चिह्न अभी भी बने हुए हैं । सूर्य-स्तम्भ शीर्ष से यह अनुमान लगाना ही अधिक समीचीन प्रतीत होता है कि इस युग में सूर्य को देवता के रूप में पूजा जाता होगा। द्विमुखी स्तम्भ-शीर्ष जो सूर्य-स्तम्भ शीर्ष है गुप्तकालोन स्तम्भ पर भी मिल जाता है जिसे ऐरन पर देखा जा सकता है। मन्दसौर में यशोधर्मन् के ऐसे ही स्तम्भ शीर्ष प्राप्त हुए हैं। इनमें से एक स्तम्भ का द्विमुखी सिर तो मिल गया है । सूर्य ज्ञान का प्रकाश देने वाला है । राजाओं के द्वारा भी इस स्तम्भ-शीर्ष का उपयोग इसी लाभ की प्राप्ति के लिए किया जाता होगा। सूर्य की उपासना सनातन-धर्म में आदि काल से चली आ रही थी। पद्मावती का सूर्य-स्तम्भ शीर्ष भी हिन्दू-धर्म के इस पक्ष को प्रतिभासित करता है। ४.१४ नागवंशीय सिक्के
यह जान कर आश्चर्य होना स्वाभाविक है कि पद्मावती के इस उत्खनन में कोई नागवंशीय सिक्का नहीं मिला । किन्तु इसमें सन्देह नहीं कि पवाया के निकट इतनी अधिक मात्रा में सिक्के मिले हैं कि नागवंशीय राजाओं ने यहाँ राज्य किया था, इस तथ्य को हृदयंगम करने में कोई कठिनाई ही नहीं रह जाती। सिक्कों की प्राप्ति के द्वारा पौराणिक उल्लेख अथवा अन्य ऐतिहासिक प्रमाणों की केवल पुष्टि ही नहीं होती, ये स्वयं अपने में पूर्ण साक्ष्य हैं और इस बात को भलीभाँति सिद्ध करते हैं कि इस स्थान को राजधानी बना कर नागों ने न केवल राज्य किया होगा वरन् इस राज्य की कोई अपनी टकसाल होगी जहाँ सिक्कों की ढलाई होती होगी। इससे इस राज्य की आर्थिक स्थिति पर भी प्रकाश पड़ता है। यह एक धनधान्य से सम्पन्न राज्य होना चाहिए । नागवंश के राजाओं ने अपने सिक्कों पर अपने-अपने चिह्न अंकित किये हैं, इससे किसी सिक्के के आधार पर राजा के विषय में जानकारी प्राप्त करने में सुगमता हो जाती है । ग्वालियर के संग्रहालय में नागवंशीय राजाओं के ये सिक्के सुरक्षित रूप स संगृहीत हैं । ग्वालियर का संग्रहालय इस प्रकार न केवल नागवंशीय सिक्के अपितु पद्मावती से सम्बन्धित और भी अधिक सामग्री को सुरक्षित रखे हुए है।
नागवंशीय सिक्कों के विषय में विशेष रूप से उल्लेखनीय तथ्य यह है कि ये आकार में अपेक्षाकृत छोटे होते हैं । सिक्के के एक ओर मुद्रा लेख अंकित है जिसमें राजा का परम्परागत् वंश का नाम मिलता है। इससे उस राजा की वंश परम्परा का पता चलता है। सिक्के के दूसरी ओर कोई न कोई प्रतीक चिह्न अंकित होता है। कुछ सिक्के ऐसे भी मिले हैं जिनमें प्रतीक चिह्न दोनों ओर अंकित हैं तथा एक ओर प्रतीक चिह्न के साथ-साथ राजा का
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