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पंमावती के ध्वंसावशेष : ५५ यहाँ जिस ताड़-स्तम्भ शीर्ष की चर्चा की जा रही है वह पवाया अथवा प्राचीन पद्मावती पर स्थापित किया गया था । यह पार्वती नदी के उत्तरी तट से कुछ ही दूरी पर अर्थात् पवाया गाँव से लगभग एक मील दूर उत्तर पश्चिम में एक बड़े से ईंटों के टीले पर खेत में पड़ा मिला था। यह लम्बाकार स्तम्भ ऐसा बनाया गया है कि ऊपरी सिरे की ओर पतला होता चला गया है । यह ताड़ की तीन पत्तियों से ढका हुआ है। ऊपरी सिरे की ओर एक बन्द कली तथा पत्तियों के मध्य जो खाली स्थान है उसमें फलों के गुच्छे हैं। इनमें से ऊपर की कली तथा ऊपर के पात उन्नतोन्मुख हैं। नीचे के दोनों पत्ते नतोन्मुख हैं । यह स्तम्भ शीर्ष बहुत कुछ टूट-फूट गया है । जो अंश अवशेष रह गया है उसकी कुल लम्बाई पाँच फीट तीन इंच है। कली का नुकीला सिरा, शेर का सिर तथा स्तम्भ का आधार-खण्ड खण्डित हो चुके हैं । शीर्ष के साथ स्तम्भ होना चाहिए इस बात का अनुमान उस खाँचे से लगाया जा सकता है जो अभी भी विद्यमान है। किन्तु अभी उस खण्ड की खोज नहीं हो पायी है । सम्भव है कि यह भी पवाया के किसी खेत में छिपा पड़ा हो ।
भूमरा के मन्दिर में भी ताड़ की विलक्षण आकृतियाँ मिली हैं। ये आकृतियाँ नागों की परम्परागत प्रवृत्तियों की ओर संकेत करती हैं । पद्मावती का ताड़-स्तम्भ शीर्ष इसी बात की ओर संकेत करता है । भूमरा में ताड़ के पूरे के पूरे खम्भे मिले हैं जो ताड़ों के वृक्षों के रूप में गढ़े गये थे । खम्भों का यह ऐसा रूप है जो और कहीं नहीं मिलता है। इसे नाग कल्पना ही कहा जा सकता है। ताड़ के पत्तों का उपयोग सजावट के लिए किया जाता था । इस सम्बन्ध में यह अनुमान लगाना तो स्वाभाविक प्रतीत नहीं होता कि नागों के राज्य में ताड़वृक्ष अधिक उगते थे । चाहे जो कारण हो नागों ने ताड़-वृक्षों को पवित्र और उपयोगी एवं कल्याणकारी समझा होगा ।
श्री मो० बा० गर्दै के निर्देशन में उस टीले की जांच पड़ताल की गयी थी जहाँ यह स्तम्भ शीर्ष पड़ा मिला था। सबसे पहले तो वहाँ एक छोटा गड्ढा मिला। उस गड्ढे के नीचे एक चबूतरा मिला जिसकी चिनाई चूने और गारे से हुई थी। टीले का निचला अंश पूर्ववत् बना हुआ है । किन्तु उस टीले के एक अन्य भाग में एक और स्तम्भ शीर्ष मिला है। यह स्तम्भ शीर्ष एक ओर तो बिल्कुल सपाट है किन्तु अन्य तीन ओर नाटे कद का एक व्यक्ति बनाया गया है, जो सम्भवतः कीचक है । इन बौने प्राणियों की गर्दन में हार पहनाया गया है। यह गुप्तकाल की मूर्तिकला का नमूना जैसा प्रतीत होता है । शीर्ष के चोटी वाले भाग में जो वेशभूषा पहनायी गयी है वह कला का कोई अच्छा नमूना नहीं प्रतीत होती । यह भी सम्भव है कि शीर्ष वाले इस स्थान पर कभी कोई स्तूप रहा हो अथवा इस विषय में किसी मन्दिर के तोरण अथवा उससे सम्बद्ध किसी स्तम्भ की सम्भावना को भी नहीं टाला जा सकता। ४.१३ सूर्य-स्तम्भ शीर्ष
वेद 'तमसो मा ज्योतिर्गमयः' का स्वर अलापते हैं किन्तु प्रकाश तो भगवान सूर्य से मिलता है । इसी प्रकाश की प्राप्ति के लिए पद्मावती में सूर्य-स्तम्भ शीर्ष की रचना की जाती होगी। पद्मावती में प्राप्त द्विमुखी सूर्य-स्तम्भ में दो मानव मूर्तियों की कल्पना की गयी है
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