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५४ : पद्मावती
नाग-छत्र
नाग-छत्र का चिह्न विशेष कर नागों की मुद्राओं पर देखने को मिलेगा। नागों ने सर्प को अपने राजकीय चिह्न के रूप में स्वीकृत किया था । नाग राजाओं की मूर्तियों में भी नागछत्र देखने को मिल जायगा । ऐसी कुछ मूर्तियाँ फीरोजपुर विदिशा में प्राप्त हुई हैं जिन पर नाग-छत्र के चिह्न अंकित हैं । नाग देवी-देवताओं की प्रतिमाओं का निर्माण भी विशेष कर नाग-काल में हुआ। नागों के समय में पद्मावती और मथुरा में विशाल मन्दिर, महल, मठ और स्तूप तथा अन्य इमारतों का भी निर्माण हुआ था। किन्तु नाग-छत्र नाग-काल की ही देन है। ४.११ बुद्ध प्रतिमा
पद्मावती में प्राप्त मूर्तियों में बुद्ध की प्रतिमा भी मिली है । इससे केवल यही अनुमान लगाया जायगा कि बुद्ध धर्म का प्रभाव अन्य स्थानों के समान पद्मावती पर भी रहा होगा किन्तु इस प्रतिमा की चरण चौकी पर जो अक्षर अंकित हैं उनसे श्री मो० वा० गर्दे ने यह अनुमान लगाया है कि ये अक्षर ईसा की सातवीं अथवा आठवीं शताब्दी के होने चाहिए। इससे इस सम्भावना को भी नहीं टाला जा सकता कि ये अक्षर ही नहीं वरन् स्वयं यह मूर्ति भी बाद की हो । तब फिर यह मान कर चलना होगा कि बुद्ध धर्म का प्रभाव बहुत समय बाद प्रारम्भ हुआ होगा । ४.१२ ताड़-स्तम्भ शीर्ष
पद्मावती के ध्वंसावशेषों में दूसरा महत्वपूर्ण अवशेष है-ताड़-स्तम्भ शीर्ष । महाभारत में नागों को ताड़ध्वज कहा गया है । नागों की मुद्राओं पर भी ताड़ का राजचिह्न पाया जाता है । वीरसेन नाग का एक अभिलेख जानखट में पाया गया है और भी कुछ मन्दिरों में ऐसे चिह्न मिले हैं जो नागों के साथ ताड़-वृक्ष के सम्बन्ध को स्थापित करते हैं। इन अवशेषों में एक ताड़ की आकृति का अलंकरण भी मिला है। नागों की पद्मावती से पूर्व विदिशा भी राजधानी रह चुकी थी। कुछ अवशेष विदिशा में भी मिलते हैं और दोनों स्थानों में प्राप्त अवशेषों की तुलना करने पर यह सिद्ध हो जाता है कि विदिशा के अवशेष प्राचीनतर हैं । दोनों ताड़ स्तम्भ शीर्षों की तुलना करने पर यह भी प्रतीत होता है कि रचना की सरलता विदिशा के स्तम्भ शीर्ष में है, पद्मावती का ताड़-स्तम्भ शीर्ष रचना में कुछ जटिल-सा प्रतीत होता है । पद्मावती के स्तम्भ शीर्ष के निर्माण में उत्कृष्टता कालान्तर में आ गयो होगी यह अनुमान सहज में ही लगाया जा सकता है।
इन ताड़-स्तम्भ शीर्षों के स्थापित करने का कौन-सा उचित स्थान चुना गया और उसका उद्देश्य क्या हो सकता है ? ये प्रश्न भी कम महत्व के नहीं हैं। एक सम्भावना तो इस बात की है कि इन्हें मन्दिरों के निकट स्थापित किया गया होगा। दूसरी सम्भावना यह भी है कि नागों ने अपने मन्दिरों के सम्मुख या उसके निकट इनकी स्थापना की हो। धार्मिक यश-लाभ और सामाजिक प्रतिष्ठा के साथ ही स्मारक के रूप में भी इनका उपयोग किया गया होगा।
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