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पद्मावती के ध्वंसावशेष : ५१ तत्कालीन समाज की सुख और सौरभ सम्पन्नता की भी सूचक है । जिस काल में पद्मावती में विष्णु की उपासना की जाती थी उस काल में यह राज्य सुख और समृद्धि से पूर्ण रहा होगा, ऐसा अनुमान लगाना अनुचित न होगा। विष्णु की उपासना तत्कालीन समाज के उच्चकोटि के आध्यत्मिक चिन्तन की सूचक है । ४.८ नाग राजा की मूर्ति
पवाया में प्राप्त नाग राजा की मूर्ति बहुत अधिक खण्डित हो चुकी है। यहाँ तक कि न इसके हाथ हैं, न पाँव और न मुख । किन्तु कला की दृष्टि से इस मूर्ति का मूल्य उक्त विष्णु की मूर्ति से भी अधिक है । सर्प जो मूर्ति के सिर पर फन फहराये हुए है विखंडितप्राय हो चुका है। अनुमान लगाया जा सकता है कि इस मूर्ति के कानों में कुण्डल होंगे, जिनके चिह्न अभी तक अंकित हैं। उसके गले के हार का भी निशान बना हुआ है। कमर में भली भाँति कसा हुआ कटिवस्त्र सुशोभित है । भव्य साज-सज्जा और वेशभूषा से ज्ञात होता है कि यह मूर्ति किसी नाग राजा की ही होनी चाहिए। फिर सर्प की उपस्थिति इस तथ्य को प्रमाणित कर देती है । नाग राजा की मूर्ति के स्थापित करने का एक कारण यह रहा होगा कि इस राजा ने मन्दिर बनवाने के लिए राज्यकोष से कुछ दान दिया होगा । अन्य बातें तो सहज अनुमान पर ही आधारित हैं, किन्तु मूर्तिकला तत्कालीन समाज में किस सीमा को छू रही थी, यह सोचने की बात है । कलाकारों में मूर्तिकला के लिए कितने त्याग की भावना विद्यमान थी। वे कला के कैसे उपासक रहे होंगे, यह तथ्य आज भी कौतूहलपूर्ण है।
राजा के विषय में राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण का कथन है :
"राजा प्रजा का पात्र है, . वह लोक प्रतिनिधि मात्र है, यदि वह प्रजा-पालक नहीं तो त्याज्य है।"
इन पंक्तियों की सार्थकता यदि कहीं देखनी हो तो नाग राजा की इस प्रतिमा के साथ । केवल प्रजा-पालक और लोकप्रिय राजा को ही सामाजिक प्रतिष्ठा मिलती थी। कलाकार भी लोकप्रिय राजा की मूर्ति बना कर उसे सम्मानित करते थे । जिस राजा ने समाज के साथ-साथ कलाकार के हृदय को भी जीत लिया हो वह लोकप्रिय तो होना ही चाहिए, इसके अतिरिक्त भी उसमें कतिपय ऐसे गुण होंगे, जो जन-मन को आकर्षित कर लें । यद्यपि पद्मावती के इस राजा की कीर्ति आज तक विद्यमान है, किन्तु कमी केवल इसी बात की है कि उसके नाम का बोध नहीं । प्राचीनता के गर्त में नाम तो एक बार के लिए भुलाया भी जा सकता है, किन्तु अपने वंश को वह राजा आज भी उजागर कर रहा है कि वह नागवंशीय था। राजसिंहासन की सुरक्षा करने वाला सर्प आज भी उस वंश की र्कीतिपताका फहरा रहा है । सर्प के चिह्न तो सिक्कों पर भी अंकित हैं, इसी से उनके नागवंशीय होने का परिचय मिलता है। इस प्रकार इस राजी के विषय म दो बातो की निश्चयपूर्वक
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