Book Title: Padmavati
Author(s): Mohanlal Sharma
Publisher: Madhyapradesh Hingi Granth Academy

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Page 62
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४ : पद्मावती तृतीय पंक्ति ___ माण (f) भद्रस्य प्रतिमा प्रतिष्ठापयति गोष्ठ्याम् भगवा आयु वालम् वाचम कल्य (1) शाम्यु चतुर्थ पंक्ति दयम् व प्रीतो दिसतु (व) ब्राह्मणस्य गौतमस्य क (मा) रस्य ब्राह्मणस्य रुद्रदासस्य शिव (त्र) दाये (इस पंक्ति में गौतमस्य शब्द पंक्ति से ऊपर लिखा गया है ) पंचम पंक्ति शमभूत (f) स्य ज (1) वस्य खम् (जबल) स्य शिव (ने) मिस् (य) शिवभ (द्र) स्य (कु) मकस्य धनदे छठी पंक्ति वस्य दा। यह अभिलेख राजा शिवनंदी के समय का अच्छा और विश्वसनीय प्रमाण प्रस्तुत करता है । माणिभद्र यक्ष की मानवाकार मूर्ति ईसा की पहली-दूसरी शताब्दी में एक जनसमुदाय के द्वारा यक्ष की स्थापना से इस बात की पुष्टि होती है कि तत्कालीन समाज में यक्ष उपासना बहु-प्रचलित थी। प्राचीन ग्रन्थों में यक्ष को धन का भण्डारी कुबेर बतलाया गया है । पवाया में प्राप्त इस प्रतिमा के हाथ में एक थैली है । यक्ष-पूजा का एकमात्र आशय होता है उसकी उपासना के द्वारा धन-धान्य की प्राप्ति । नागों के अन्य राज्यों में भी यक्ष और यक्षिणियों की पूजा की प्रथा थी। मथुरा में भी यक्ष की मूर्तियाँ मिली हैं, जिससे इसी तथ्य की पुष्टि होती है कि मथुरा और पद्मावती की धार्मिक पृष्ठभूमि का आधार एक ही है। एक जन-समुदाय के द्वारा यक्ष की प्रतिमा के प्रतिस्थापन से सिद्ध होता है कि तत्कालीन समाज में जन-सहयोग की भावना सुदृढ़ थी। राजा के कार्यों में प्रजा का पूर्ण सहयोग होता था । राजा के समस्त कार्यों के पीछे जन-कल्याण की भावना विद्यमान रहती थी। शासन का स्वरूप धर्म-प्रधान होने के साथ-साथ जन-कल्याण-प्रधान भी था। जनता में राज्यों के कार्य के लिए पूर्ण उत्साह था। ऐसे व्यक्तियों का नाम जो सामाजिक कार्यों में सहायता देते थे विशिष्ट सूची में अंकित किया जाता था। ये समाज के आदर्श व्यक्ति समझे जाते थे, समाज में उनकी प्रतिष्ठा थी। डॉ० कृष्णदत्त वाजपेयी ने मथुरा में प्राप्त यक्ष-मूर्तियों के सम्बन्ध में जो विवरण प्रस्तुत किया है (देखिये 'मथुरा', पृष्ठ ३५) उससे इस बात की पुष्टि होती है कि मथुरा और पद्मावती की संस्कृतियों में कोई बड़ा भारी अन्तर नहीं था। मथुरा में तो इसके अतिरिक्त किन्नर, गंधर्व, सुपर्ण तथा अप्सराओं की भी अनेक मूर्तियाँ मिली हैं। ये सभी For Private and Personal Use Only

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