________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
४० : पद्मावती
बड़ा महत्वपूर्ण स्थान दिया था, इस बात को सिद्ध करने के लिए अब तक प्रचुर सामग्री प्राप्त हो चुकी है । मन्दिरों के अतिरिक्त अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियाँ तथा शिवलिंग इस बात के साक्षी हैं, कि पद्मावती का राज्य एक धर्म-प्रधान राज्य था । राजा को भी अश्वमेघ यज्ञ कर लेने के पश्चात किसी सम्मानपूर्ण पद की प्राप्ति होती थी ।
मृण्मूर्तियों एवं अन्य प्राप्त मूर्तियों के आधार पर यह कहना स्वाभाविक प्रतीत होता है, कि इस काल में मूर्तिकला उत्कृष्टता की चरम परिणति पर पहुँच चुकी थी । मूर्तिकला ही क्यों, इस काल की स्थापत्य कला के भी उच्च शिखर पर पहुँच जाने के पर्याप्त प्रमाण मिल जाते हैं । उस समय के ऊँचे-ऊँचे आलीशान भवन आज भी बड़े कौतूहल की वस्तु बने हुए हैं । इन स्थूल कलाओं के अतिरिक्त सूक्ष्म कलाओं के भी इस प्रकार के प्रमाण मिले हैं, जिनसे कलाओं की बहुमखी प्रगति का बोध होता है । संगीत और वाद्यकला के तत्कालीन स्वरूप को प्रगट करने वाले एक ऐसे प्रस्तर खण्ड की प्राप्ति हुई है, जिससे संगीत, वाद्य और नर्तन के बहुप्रचलित होने का बोध होता है ।
पद्मावती का तत्कालीन समाज कलाप्रिय रहा होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं । किन्तु इसके साथ-साथ पद्मावती एक वैभवशाली और धन धान्य-सम्पन्न नगर था, इस बात को सिद्ध करने के लिए भी पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं । इसके साथ ही देशी और विदेशी व्यापार के प्रमुख मार्ग पर स्थित होने के कारण यह नगर संस्कृति का एक केन्द्र बन गया था । व्यापारी वर्ग दूर-दूर तक इस नगर की प्रशंसा करता होगा । पद्मावती के ध्वंसावशेष इस नगर के प्राचीन स्वरूप को पुनर्निर्मित करने में पर्याप्त सहयोग प्रदान करते हैं ।
४.१ संगृहोत वस्तुएँ
ध्वंसावशेषों की उक्त सामान्य चर्चा के उपरान्त अब हमें उन अवशेषों पर विचार करना चाहिए, जिनसे पद्मावती नगर की समृद्धि, तत्कालीन नागरिकों की सुरुचि एवं कलाप्रियता तथा संस्कृति पर प्रकाश पड़ता है । इस प्रकार के अवशेषों में प्रमुख रूप से मानवाकार आकृतियाँ, मूर्तियाँ, स्तम्भशीर्ष एवं सिक्के विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं । पवाया के इस क्षेत्र में सिक्कों का मिलना आज भी बंद नहीं है। बरसात दिनों में ये सिक्के धुल कर जमीन के ऊपर आ जाते हैं, ग्रामीण जन इन्हें बटोर लेते हैं । यह क्रम वर्षों से चल रहा है और आज भी बंद नहीं है । यह बात अवश्य है कि सिक्कों की मात्रा अब कम हो गयी है । सिक्के भी इस प्राचीन नगर की कहानी कहते हैं, उनका अपना पृथक महत्व है । वे अपने युग की समृद्धि के प्रतिनिधि हैं। सिक्के तो अधिकांशतः प्राचीन युगीन ही हैं, किन्तु स्थापत्य कला और मूर्तिकला के जो अवशेष मिले हैं, वे ईसा की प्रथम शताब्दी से ले कर मध्ययुग तक का प्रतिनिधित्व करते हैं ।
४.२ कुषाणों से पूर्व के स्मृति चिह्न
कुषाण शासनकाल में हमें अधिकांशतः बौद्ध और जैन धर्मों के स्मृति चिह्न मिलते हैं । उस समय का ऐसा कोई स्मृति चिह्न नहीं मिलता, जो हिन्दू ढंग की सनातनी
For Private and Personal Use Only