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पद्मावती की संस्थापना : ३७ को दृढ़तर बनाती रहीं। यदि एक राज्य की कन्या दूसरे राज्य में ब्याह दी जाती थी, तो इससे दो राज्यों के सम्बन्ध दृढ़तर ही हो जाते थे। एक वंश अपने आप को दूसरे का दौहित्र कहने में आदर का अनुभव करता था। इन मातामहों, मातुलों, दौहित्रों और भागिनेयों की दुर्धर्ष शक्तियाँ समवेत रूप से देश के शत्रुओं के दाँत गिन-गिन कर तोड़ने में लगी थीं, तथा मध्यदेश के जानपद और पौरजनों की तेजस्विता इन गणपति, चन्द्रांश, अच्युत, मत्तिल, रुद्रदेव, नागसेन, नन्दी आदि के रक्त की अन्तिम बूंद तक शेष रहते आक्रांताओं से जूझती रही।
___ इस युग में भारत की स्वाभाविक प्रवृत्तियों के अनुकूल जनपदों के गणराज्यों का पूर्ण उत्कर्ष हुआ था, तथा वे एक सूत्र में संघबद्ध हो गये थे, जिसका कारण समान उद्देश्य ही होगा । इस विशाल प्रदेश में उस समय कोई एकतंत्री सत्ता नहीं थी। किन्तु ऐसे समय में ऐसे सशक्त समाज का निर्माण किया गया, जिसमें व्यक्ति और समाज दोनों को आत्मगौरव का अनुभव हुआ होगा । केन्द्रीय शक्ति ने अपनी सार्थकता को सिद्ध करने में अपने घटकों के कल्याण को प्रमुखता दी होगी। ३.१७ गणराज्यों की समाप्ति
यह बात तो सही है कि नागवंश के केन्द्रस्थलों में से पद्मावती सर्वप्रमुख है। नागवंश का साम्राज्य बहुत विस्तृत रहा होगा । किसी-न-किसी रूप में इसका प्रभाव बंगाल से पंजाब तक और मगध से सुदूर दक्षिण तक फैला हुआ था । इस गणसंघ ने यूनानी शक और कुषाणों की जय-लालसा को तो समाप्त कर ही दिया था, किन्तु कालान्तर में वह स्वयं भी गुप्तों के विजय-चक्र का शिकार बन गया था। यह गणशक्ति धीरे-धीरे नष्ट होती गयी । इसका कारण केन्द्रीय शक्ति का शिथिल हो जाना ही रहा होगा, जिसके शिथिल हो जाने पर दूरस्थ इकाईयाँ परस्पर असम्बद्ध हो गयी थीं, जो एक-एक करके गुप्त साम्राज्य में मिल गयीं । यदि संघ अथवा केन्द्रीय शक्ति क्षीण नहीं हुई होती, तो उसके घटकों में इतना शैथिल्य न आता और पद्मावती अपनी समृद्धि और गौरव के दिन देखती रहती।
पद्मावती ने ही नहीं, नवनागों के मथुरा केन्द्र ने भी अपना प्रभुत्व खो दिया था, जिसकी ओर डॉ० कृष्णदत्त वाजपेयी ने अपनी पुस्तक 'मथुरा' में संकेत किया है।
"नागों के शासन-काल में मथुरा में शैव-धर्म की विशेष उन्नति हुई। नाग देवीदेवताओं की प्रतिमाओं का निर्माण भी इस काल में बहुत हुआ । अन्य धर्मों का विकास भी साथ-साथ होता रहा । ३१३ ई० में मथुरा के जैन श्वेताम्बरों ने स्कन्दिल नामक आचार्य की अध्यक्षता में मथुरा में एक बड़ी सभा का आयोजन किया। इस सभा में कई धार्मिक ग्रन्थों के शुद्ध पाठ स्थिर किये गये। इसी वर्ष दूसरी ऐसी ही सभा बलभी में हुई। नागों के समय में मथुरा और पद्मावती नगर बड़े समृद्ध नगरों के रूप में विकसित हुए। यहाँ
१. मध्यभारत का इतिहास, पृष्ठ ५.६८-६६ ।
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