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अध्याय तीन
पद्मावती की संस्थापना
पद्मावती के सम्बन्ध में अभी इस प्रकार के निर्णायक साक्ष्य उपलब्ध नहीं हो पाये हैं। जिनसे निस्संदेह रूप से कहा जा सके कि इसका संस्थापक अमुक राजा रहा होगा । जो कुछ अनुमान लगाये जा सके हैं उनका आधार प्रधान रूप से तो वे सिक्के हैं जो प्राचीन शासकों का उल्लेख करते हैं। डॉ० काशीप्रसाद जायसवाल ने एक ऐसे ही सिक्के का उल्लेख किया है जिस पर ३४वाँ वर्ष अंकित है । यह सिक्का वीरसेन का है जिसे पद्मावती का संस्थापक बताया जाता । वीरसेन को न केवल पद्मावती राज्य का अपितु भार शिवों के मथुरा राज्य का भी संस्थापक माना गया है। इसके साथ ही वीरसेन के एक शिलालेख का भी उल्लेख किया गया है, जो सर रिचर्ड बर्न को जानखट नामक गाँव में मिला था। किन्तु राजाओं की गणना में नवनाग नामक राजा की भी गणना की जाती रही । 'नवनाग' के नौ राजाओं वाली बात तो अब प्रसिद्ध हो चुकी है । यदि नवनाग राजा का नाम नहीं था, तो इस बात की पूरी-पूरी संभावना है कि एक बार सत्ता खोने के पश्चात् पुनः सत्ता प्राप्त करने के कारण नवनाग कहलाये । ये नाग विदिशा के नागों से भिन्नता दर्शाने के लिए अपने नाम के साथ 'नवनाग' शब्द का प्रयोग करने लगे हों । वैसे यदि वीरसेन को ही पद्मावती का संस्थापक माना जाय, तो उसका समय लगभग १४० ई० से १७० ई० तक का ठहरता है ।
३.२ वीरसेन का शिलालेख
सर रिचर्ड बर्न को जानखट नामक गाँव में वीरसेन का एक शिलालेख मिला था । जानख गाँव फरुखाबाद जिले की तिरुवा तहसील के अन्तर्गत आता है । इस शिलालेख का सर्वप्रथम उल्लेख श्री पाजिटर द्वारा सम्पादित एपीग्राफिया इण्डिका, खण्ड ११, पृष्ठ ८५ के लेख में किया गया है । आश्चर्य की बात तो यह है यह लेख पत्थर की बनी हुई एक
और भी विचारणीय
पशु की मूर्ति के सिर और मुँह पर खुदा है । इसके साथ ही एक बात है कि वीरसेन के सिक्के का चिह्न और जानखट के इस शिलालेख के वक्ष का आकार एक जैसा है नागों का प्रसिद्ध ताड़वृक्ष । इस वृक्ष के आस-पास कुछ और भी
चिह्न एक जैसे हैं ।
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