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साहित्य और इतिहास : ११ ४-सिन्धु और पारा नदियों का संगम तो था ही, नगर के निकट एक अन्य संगम भी था। यह सिन्धु और मधुमती नदियों के द्वारा निर्मित हुआ था। इसी संगम पर एक शिव मंदिर की स्थिति बताई गई है, जिसका नाम सुवर्ण बिन्दु दिया गया है।
५--- उपर्युक्त तीन नदियों के अतिरिक्त एक चौथी नदी भी थी जो पद्मावती से बहुत दूर नहीं थी।
इस प्रकार पद्मावती की सही स्थिति सिन्धु और पारा ( वर्तमान सिंधु और पार्वती ) नदियों के संगम पर निर्णीत होती है। वर्तमान पवाया से लगभग दो मील की दूरी पर सिन्ध नदी में एक जलप्रपात भी है। 'मालती माधव' में जिस जलप्रपात की ओर संकेत किया गया है, वह सम्भवतः यही होना चाहिये। इसके साथ ही पवाया से दो मील की दूरी पर मधुमती नदी जिसे आज 'महुवर' कहा जाता है, देखी जा सकती है। 'मालती माधव' में सिंधु और मधुमती के संगम पर जिस सुवर्णबिन्दु मन्दिर का उल्लेख है, यह वही मन्दिर होना चाहिये। यहीं पर शिवलिंग को सहारा देने वाला चबूतरा भी है। फिर लवण, जिसका आज का नाम नून नदी है, पवाया से ४–५ मील की दूरी पर ही है। संस्कृत का लवण शब्द हिन्दी में नमक, नोन और नून ही बना है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी लवण का नून असंगत प्रतीत नहीं होता। इस स्थान से नरवर की दूरी लगभग २५ मील है। मालती माधव में नदियों के जिस संगम और नकट्य का स्पष्टीकरण मिलता है वह नरवर न हो कर वर्तमान पवाया ही होगा। इस प्रकार श्री कनिंघम सत्य के अति निकट पहुँच गये थे । यद्यपि 'मालती माधव' कोई ऐतिहासिक ग्रंथ नहीं है किन्तु अन्य प्राप्त सामग्री के संदर्भ में इस साक्ष्य को ठुकराया नहीं जा सकता। साथ ही उत्खनन के परिणामस्वरूप प्राप्त अवशेष भी इस तथ्य का समर्थन करते हैं। २.४ सरस्वती कंठाभरण में पद्मावती
पारा और सिन्धु नदियों के विषय में एक उल्लेख परमार-शासक भोज कृत 'सरस्वती कंठाभरण' नामक ग्रंथ में भी मिलता है। यह कृति ई० ११वीं शताब्दी की है। इसमें पारा नदी के तट पर किसी विहार का उल्लेख किया गया है। साथ ही नागराज का कोई वन भी होना चाहिये जिसका नाम इस ग्रंथ में 'फणिपतिवन' किया गया है। इसमें किसी पहाड़ी का भी उल्लेख मिलता है। यद्यपि इस उल्लेख से पद्मावती की स्थिति स्पष्ट नहीं होती। किन्तु अन्य साक्ष्यों के साथ तालमेल बैठाने पर इस बात का निश्चय हो पाता है कि सरस्वती कंठाभरण का यह संकेत निश्चित रूप से पद्मावती की ओर है। पहाड़ी, विहार और वन सब मिल कर पद्मावती के निकटस्थ स्थल का स्पष्टीकरण करते हैं।
१. पुरः पारा अपारा तटभवि विहारः पुरवरं तत: सिन्धुः सिन्धुः फणिपतिवनं पावनमतः । तदने तूदनो गिरिरिति गिरिस्तस्य पुरतो विशाला शालाभिललित ललनाभिर्विजयतो॥
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