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२४ : पद्मावती
३.६ विरुदावली
पद्मावती के भारशिवों की सूची में अंकित राजाओं की मुद्रा पर जो विरुद लिखे गये हैं, उससे भी इन शासकों के सम्बन्ध में कुछ अनुमान किये जा सकते हैं । उक्त सभी राजाओं में से केवल एक राजा ही ऐसा है जिसके नाम के साथ 'अधिराजश्री' शब्द का प्रयोग मिलता है । अधिराजश्री का पर्याय होता है सम्राट् । एक अन्य विरुद 'महाराजश्री' निम्न राजाओं के नामों के सामने अंकित है - वृषनाग, व्याघ्र, विभु, वीरसेन, भीमनाग, देव, प्रभाकर एवं गणपति नाग । शेष कुछ राजाओं के नाम के सम्मुख केवल 'महाराज' शब्द ही मिलता है । स्कन्द के नाम के साथ 'महाराज' एवं 'धराज' शब्द पढ़ा गया है । रविनाग का विरुद 'अधिराज' अंकित किया गया है। श्री हरिहर निवास द्विवेदी ने अपना विश्वास प्रगट किया
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कि नवनागों की मुद्राओं पर अंकित नाम उनके व्यक्तिवाचक नाम नहीं हैं । ये उनके अभिषेक के नाम हैं, जो उन्होंने अपने आराध्य और व्यक्तिगत पद के आधार पर धारण किये थे ।
३.१० पद्मावती के शासक
वृषनाग
व्याधनाग
मध्य भारत के इतिहास के लेखकद्वय ने तो पुराणों और सिक्कों के आधार पर वृषनाग को ही पद्मावती का संस्थापक बताया है। पुराणों में विदिशा के नागों को वृष कहा गया है । किन्तु वृषनाग के सिक्के पद्मावती में भी मिले हैं और एक मानवाकार नन्दी भी मिला है । सम्भावना यही प्रतीत होती है कि वृष ही विदिशा से पद्मावती आया होगा । वृष की मुद्राओं पर नन्दी का चिह्न मिलता है । इस नन्दी में विशेषता यह है कि यह सम्मुख नन्दी है । अन्य सिक्कों पर अंकित नन्दी या तो दक्षिण मुख है अथवा वाममुख । वृष नाग के पद्मावती में आगमन का समय ईसवी सन् की पहली शताब्दी बताया गया है । इस प्रकार पद्मावती का इतिहास ई० की दूसरी शताब्दी से प्रारम्भ न होकर ईसा की पहली शताब्दी से ही प्रारम्भ होता है ।
वृष नाग के उपरान्त व्याघ्र राजा के शासनारोहण की सम्भावना अधिक प्रतीत होती है । कनिंघम ने इसे व्याघ्र ही पढ़ा था किन्तु प्लेट संख्या २ चित्र संख्या २२ में व्याघ्रलिखा मिलता है । व्याघ्र नाग था, यह तो निश्चित ही है । उसने अपने सिक्कों पर आठ आरे वाले चक्र का चिह्न अंकित किया था । इसका विरुद ' महाराज श्री व्याघ्र' अंकित है ।
विभुनाग
व्याघ्र के पश्चात् विभुनाग का शासन काल आता है। इसके सिक्के पर भी आठ आरे वाला चक्र मिलता है जो व्याघ्रनाग का ही है । इसके अतिरिक्त अंकुश और परशु के
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