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पद्मावती की संस्थापना : २७
मयूर के अतिरिक्त उसके सिक्कों पर नन्दी, त्रिशूल, परशु तथा चक्र भी मिलता है । नन्दी, त्रिशूल, परशु तथा चक्र ऐसे सामान्य चिह्न हैं, जिनमें से किसी भी एक चिह्न से नागवंशीय होने का संकेत मिल जाता है । किन्तु मयूर का चिह्न सामान्य प्रतीत नहीं होता । यह नागवंश के कुछ ही राजाओं की मुद्रा पर मिलता है ।
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देवेन्द्र नाग
एक सिक्का जिस पर विन्सेट स्मिथ ने देवस पढ़ा था, तथा जो देव या देवेन्द्र नाग का सिक्का बताया जाता है, बड़ा समस्यात्मक बन गया | डॉ० काशीप्रसाद ने देवस के स्थान पर नवस पढ़ा। इस सिक्के का विस्तार क्षेत्र बड़ा व्यापक है । यह सिक्का उत्तरप्रदेश में कानपुर तक मिला है । इसके साथ ही पद्मावती में भी देव के सिक्के मिले हैं । श्री हरिहर निवास द्विवेदी ने देव का राज्यकाल लगभग २७ वर्ष का माना है । उनकी धारणा है कि देवनाग का राज्यकाल २४० ई० के लगभग समाप्त हो गया होगा । किन्तु डॉ० जायसवाल ने उसका राज्यकाल केवल २० वर्ष का बताया है, अर्थात सन् २६० से ३१० ई० तक । देवनाग के सिक्के पर चक्र का चिह्न मिलता है और श्री देवनागस्य या महाराज श्री देवेन्द्र का विरुद प्राप्त होता है ।
प्रभाकर नाग
प्रभाकर अथवा जिसे पुंनाग भी कहा गया है, पद्मावती का दसवाँ शासक था । इसकी मुद्रा पर दोनों प्रकार के नन्दियों के चिह्न मिलते हैं, अर्थात दक्षिण नन्दी एवं वाम नन्दी | दक्षिण सिंह और वाम सिंह भी इसकी मुद्रा पर प्राप्त होता है। सिंह का यह चिह्न भी शिवजी से सम्बन्धित है । यह शिव की शक्ति पार्वती का प्रतीक है । लगता है, प्रभाकर विन्ध्यवासिनी का उपासक था। उसके सेनापति का नाम विन्ध्यशक्ति दिया गया है । विन्ध्यशक्ति का बड़ा घनिष्ट सम्बन्ध पद्मावती से रहा था । इसका उल्लेख भवनाग के प्रसंग में किया जायेगा । प्रभाकर के विरुद के रूप में महाराज श्रीप्रभ मिलता है ।
रविनाग
भवनाग
रविनाग के सिक्कों पर अधिराज या महाराज पढ़ा गया है। उसकी मुद्राओं पर नन्दी की मूर्ति अंकित मिलती है । 'दि जर्नल ऑफ दी न्यूमिस्मैटिक सोसायटी ऑफ इंडिया' के मार्च १६५३ के अंक में डॉ० हरिहर त्रिवेदी ने इसका उल्लेख किया है ।
नवनागों में भवनाग का नाम विशेष महत्व का है । यह उपरोक्त सूची का बारहवाँ राजा है । भवनाग का उल्लेख शिलालेखों में भी मिलता है । उसके सिक्के भी मिलते हैं । दोनों प्रकार की आकृतियों के नन्दी, त्रिशूल, वृत्त, परिक्रमा में अर्द्धचन्द्र तथा वृत्त सहित चन्द्र इसकी मुद्राओं के चिह्न हैं । भवनाग का विरुद महाराज अधिराज श्री मिलता है ।
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