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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पद्मावती की संस्थापना : २७ मयूर के अतिरिक्त उसके सिक्कों पर नन्दी, त्रिशूल, परशु तथा चक्र भी मिलता है । नन्दी, त्रिशूल, परशु तथा चक्र ऐसे सामान्य चिह्न हैं, जिनमें से किसी भी एक चिह्न से नागवंशीय होने का संकेत मिल जाता है । किन्तु मयूर का चिह्न सामान्य प्रतीत नहीं होता । यह नागवंश के कुछ ही राजाओं की मुद्रा पर मिलता है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवेन्द्र नाग एक सिक्का जिस पर विन्सेट स्मिथ ने देवस पढ़ा था, तथा जो देव या देवेन्द्र नाग का सिक्का बताया जाता है, बड़ा समस्यात्मक बन गया | डॉ० काशीप्रसाद ने देवस के स्थान पर नवस पढ़ा। इस सिक्के का विस्तार क्षेत्र बड़ा व्यापक है । यह सिक्का उत्तरप्रदेश में कानपुर तक मिला है । इसके साथ ही पद्मावती में भी देव के सिक्के मिले हैं । श्री हरिहर निवास द्विवेदी ने देव का राज्यकाल लगभग २७ वर्ष का माना है । उनकी धारणा है कि देवनाग का राज्यकाल २४० ई० के लगभग समाप्त हो गया होगा । किन्तु डॉ० जायसवाल ने उसका राज्यकाल केवल २० वर्ष का बताया है, अर्थात सन् २६० से ३१० ई० तक । देवनाग के सिक्के पर चक्र का चिह्न मिलता है और श्री देवनागस्य या महाराज श्री देवेन्द्र का विरुद प्राप्त होता है । प्रभाकर नाग प्रभाकर अथवा जिसे पुंनाग भी कहा गया है, पद्मावती का दसवाँ शासक था । इसकी मुद्रा पर दोनों प्रकार के नन्दियों के चिह्न मिलते हैं, अर्थात दक्षिण नन्दी एवं वाम नन्दी | दक्षिण सिंह और वाम सिंह भी इसकी मुद्रा पर प्राप्त होता है। सिंह का यह चिह्न भी शिवजी से सम्बन्धित है । यह शिव की शक्ति पार्वती का प्रतीक है । लगता है, प्रभाकर विन्ध्यवासिनी का उपासक था। उसके सेनापति का नाम विन्ध्यशक्ति दिया गया है । विन्ध्यशक्ति का बड़ा घनिष्ट सम्बन्ध पद्मावती से रहा था । इसका उल्लेख भवनाग के प्रसंग में किया जायेगा । प्रभाकर के विरुद के रूप में महाराज श्रीप्रभ मिलता है । रविनाग भवनाग रविनाग के सिक्कों पर अधिराज या महाराज पढ़ा गया है। उसकी मुद्राओं पर नन्दी की मूर्ति अंकित मिलती है । 'दि जर्नल ऑफ दी न्यूमिस्मैटिक सोसायटी ऑफ इंडिया' के मार्च १६५३ के अंक में डॉ० हरिहर त्रिवेदी ने इसका उल्लेख किया है । नवनागों में भवनाग का नाम विशेष महत्व का है । यह उपरोक्त सूची का बारहवाँ राजा है । भवनाग का उल्लेख शिलालेखों में भी मिलता है । उसके सिक्के भी मिलते हैं । दोनों प्रकार की आकृतियों के नन्दी, त्रिशूल, वृत्त, परिक्रमा में अर्द्धचन्द्र तथा वृत्त सहित चन्द्र इसकी मुद्राओं के चिह्न हैं । भवनाग का विरुद महाराज अधिराज श्री मिलता है । For Private and Personal Use Only
SR No.020523
Book TitlePadmavati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sharma
PublisherMadhyapradesh Hingi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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