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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६ : पद्मावती मथुरा में मिले हैं, किन्तु पद्मावती में भी इसके सिक्के मिले हैं । इससे यह अनुमान सही प्रतीत होता है कि मथुरा और पद्मावती दोनों ही पर इसका शासन रहा होगा । वीरसेन के सिक्कों पर वामनन्दी के चित्र मिलते हैं । त्रिशूल और परशु को भी इसने अपने चिह्न के रूप में अपनाया था। विरुद के रूप में हमें 'महाराज वीरसेनस्य' लिखा मिलता है। इसके सिक्के पर ६४वाँ वर्ष लिखा मिलता है। डॉ० जायसवाल ने इसका समय ई० सन् १७० से २१० तक का माना है । वीरसेन के सिक्कों की लिपि की तुलना डॉ० जायसवाल ने हयनाग के सिक्के पर प्राप्त लिपि से की है । दोनों लिपियों को प्राचीन बताते हुए उन्होंने इन सिक्कों को लगभग समकालीन बताया है। वीरसेन का तो शिलालेख भी मिलता है, जिसका वृक्ष सिक्कों के वृक्ष से मेल खाता है। डॉ० अल्तेकर ने अनुमान लगाया है कि वीरसेन के सिक्के चूंकि अधिकांशतः मथुरा में मिलते हैं, इसलिए उसने मथुरा में नये नागवंश की स्थापना की । किन्तु उसके सिक्के पद्मावती और कान्तिपुरी में भी मिलते हैं। अतएव उसके साम्राज्य का विस्तार इन दोनों राजधानियों तक रहा होगा। वीरसेन का शिलालेख फरुखाबाद के जानखट नामक ग्राम में मिला बताया जाता है', उस पर 'स्वामिन् वीरसेन संवत्सरे १०,३ (१३)' लिखा है। जानखट के अवशेषों में ताड़ और गंगा के चित्र भी यह सिद्ध करते हैं कि यह वीरसेन नागवंशीय ही होना चाहिए। स्कन्दनाग वीरसेन के उपरान्त पद्मावती पर स्कन्दनाग का शासन रहा। डॉ० हरिहर त्रिवेदी के 'दी जर्नल ऑफ दी न्युमिस्मैटिक सोसायटी ऑफ इण्डिया' के मार्च १६५३ के अंक में प्रकाशित लेख के अनुसार उसके सिक्कों पर मयूर, नन्दी और अश्व का चिह्न मिलता है। अश्व चिह्नयुक्त सिक्के के पीछे ...."धराज' शब्द पढ़ा गया है । धराज महाराजाधिराज के ही अर्थ की निकटता बताने वाला होना चाहिए । अश्व का चिह्न अश्वमेधयज्ञ की ओर संकेत करता है। डॉ० जायसवाल ने स्कन्दनाग का समय ई० सन् २३० से २५० तक का माना है। भीमनाग काल-क्रम में भीमनाग को डॉ० जायसवाल ने स्कन्द का पूर्वकालीन माना है। उसका समय ई० सन् २१० से २३० तक माना है। उसके सिक्कों पर मयूर और नन्दी के चिह्न मिलते हैं। भीम का विरुद महाराज श्री ऊपर बताया जा चुका है। वृहस्पति नाग वृहस्पति नाग ही ऐसा अन्तिम नाग राजा था, जिसने मयूर चिह्न का अपने सिक्कों पर उपयोग किया था। उसके पश्चात् अन्य किसी राजा की मुद्रा पर मयूर नहीं मिलता। १. अंधकारयुगीन भारत, पृष्ठ ४१ । For Private and Personal Use Only
SR No.020523
Book TitlePadmavati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sharma
PublisherMadhyapradesh Hingi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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