SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मावती को संस्थापना ! २५ भी चित्र मिलते हैं । डॉ० जायसवाल ने जिस व्याघ्रनाग का उल्लेख किया है उसका समय लगभग २७० से २६० ई० तक का दिया है, परन्तु सिक्कों के आधार पर व्याघ्रनाग पूर्वकालीन होना चाहिए। विभु का नन्दी वामाभिमुख है, जबकि वृषनाग ने सम्मुख नन्दी वाले चिह्न का उपयोग किया था। डॉ० हरिहर त्रिवेदी ने जिस सिक्के पर दुबारा ठोके गये लांछन को 'महत' या 'मपत' पढ़ा है वह सिक्का विभु के समय के बाद का है। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि विभु के पश्चात् अर्थात् ई० सन् ८० या ६० में पद्मावती पर कुषाण शासन रहा था। वनस्फर या वनस्पर के शासन का उल्लेख पहले किया जा चुका है । इस समय लगता है विदिशा भी कुषाण शासन के अन्तर्गत आ गया था। वाषिष्क कुषाण के साँची के अभिलेख से इस बात की पुष्टि हो जाती है। अब प्रश्न यह है कि कुषाणों के शासन-काल में पद्मावती के नाग-वंशी राजा कहाँ रहे होंगे। सम्भावना यह प्रतीत होती है, कि पद्मावती में पराजित हो कर नाग राजाओं ने कान्तिपुरी को अपना कार्य-केन्द्र बनाया होगा । पद्मावती से कान्तिपुरी की दूरी कुछ अधिक नहीं है । दूसरे यह स्थान मुख्य मार्ग से कुछ हट कर था । दूसरी सुविधा यह भी रही होगी कि इन नागों को यहाँ रह कर अपनी प्रमुख राजधानी पद्मावती में रुचि बनी रही होगी और मथुरा तथा पद्मावती की गतिविधियों पर दृष्टि बनाये रखने में सरलता रही होगी। कान्तिपुरी किसे माना जाये, इस सम्बन्ध में विवाद बना रहा है। किन्तु अब यह प्रायः निश्चित प्रतीत होता है कि मुरैना जिले का कुतवार ही कान्तिपुरी रहा होगा। यहाँ यद्यपि उत्खनन का कार्य नहीं हुआ है, किन्तु एक ही निधि से १८००० से भी अधिक नाग मुद्राओं की प्राप्ति विशेष महत्व की बात है। सिक्कों की यह निधि इस बात का निर्णय कर सकती है, कि कान्तिपुरी ( वर्तमान कुतवार) में कोई सम्पन्न राज्य कायम रहा होगा। वसुनाग ___ अनुमानतः कुषाण राजा हुविष्क से नागवंशीय राजा वसु ने पद्मावती को पुनः प्राप्त कर लिया । यह घटना ई० सन् लगभग १५० की होगी। वसु के सिक्कों पर 'वसुनागस्य' का विरुद प्राप्त होता है। किसी-किसी सिक्के पर 'ख नाग' और 'व नाग' भी मिला है। जिसके विषय में यह अनुमान लगाया जाता है, कि यह सिक्का वसुनाग का ही होना चाहिए। इसके सिक्के का चिह्न मयूर है। वसुनाग के विरुद के रूप में 'वसु नागेन्द्र' एवं 'महाराज वसुनाग' लिखा मिला है । वीरसेन वसु के शासन के पश्चात एक ऐसे शासक का उल्लेख मिलता है, जो और भी अधिक शक्तिशाली सिद्ध हुआ। ऐसा प्रतीत होता है कि वीरसेन ने पद्मावती के साथ-साथ मथुरा को भी वासुदेव कुषाण से प्राप्त कर लिया था। वीरसेन के सिक्के अधिकांशतः For Private and Personal Use Only
SR No.020523
Book TitlePadmavati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sharma
PublisherMadhyapradesh Hingi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy